मंगलवार, 30 अप्रैल 2013

मजदूर दिवस पर बाल मजदूरी पर कुछ एहसास







मजदूर दिवस पर बाल मजदूरी पर कुछ एहसास 



जहां तेरे हाथों में सजनी थी बचपन में नील सिह्याई 
कानों में अ आ इ ई के शब्दों का मृदु स्वर होना था 
पत्थर और हथोडी की थापों में गुम हो गया बालपन 
चौराहे के पास बना विद्यालय जिसका घर होना था ||


माँ की लोरी क्या होती है उसको तो गाली मिलती है 
जूठे बर्तन धोकर जूठे खाने की थाली मिलती है 
खुला आसमां नंगी धरती शयन कक्ष है सूखा तन है 
कीट पतंगे मच्छर जलचर सबकी रखवाली मिलती है ||


कूड़े के ऊंचे ढेरों को बीन बीन कर थक जाए जब 
कड़ी दोपहर में सड़कों पर जलते जलते तप जाए जब 
तब उसकी आँखों में झांको तुमको सच दिखलाई देगा 
दो बासी रोटी के टुकड़े चौराहे पर रख जाए जब ||


फ़िक्र करे क्या कोई उसकी वो तो वोट नहीं दे सकता 
बालिग़ होकर क्या कर लेगा तुमको चोट नहीं दे सकता 
विश्व बैंक से भीख मांगने का सच्चा साधन है जो वो 
बात अलग है खुद खाने रहने को नोट नहीं दे सकता ||


संस्कारों की बात सीखने मंदिर मस्जिद जाने वालों 
धर्म ग्रथ के शिव को भर भर कच्चा दूध पिलाने वालों 
इन मासूमों की आँखों में खाख दिखेगा तुमको ईश्वर 
राजनीति के कोठे पर भड़ुओं को वोट दिलाने वालों ||

Manoj Nautiyal 


रविवार, 28 अप्रैल 2013

अबला की अस्मत लुटती है ,हिन्दू ,हिंदुस्तान नहीं है बेईमानों के राज तन्त्र में भारत की पहचान यही है ||




21वीं सदी में भारत की स्थिति पर 

अबला की अस्मत लुटती है ,हिन्दू ,हिंदुस्तान नहीं है 
बेईमानों  के राज तन्त्र में भारत की पहचान यही है ||

खादी बर्बादी करने में सबसे आगे खड़ी रहेगी 
खाखी वर्दी में अपराधी भोली जनता डरी रहेगी 
घोटालों का लोकतंत्र में काला चिटठा खोलेगा जो 
देशद्रोह लगेगा उस पर जनहित भाषण बोलेगा जो ||

कारावासी चला रहे हैं देश , बचा ईमान नहीं है 
बेईमानों  के राज तन्त्र में भारत की पहचान यही है ||

आम नागरिक रोते- रोते गली- गली खायेगा ठोकर 
पांच साल में कुछ दिन लेकिन कहलायेगा सच्चा वोटर 
कुर्सी के चोरों की महफ़िल फिर से दिल्ली में सोएगी 
अगले पांच साल को जनता पुनः नया रोना रोएगी ||

मोबाइल घर घर हैं लेकिन खाने का सामान नहीं है 
बेईमानों  के राज तन्त्र में भारत की पहचान यही है ||

पूर्ण धर्म निरपेक्ष राष्ट्र में आरक्षण का रोना होगा 
शिक्षा का अधिकार उसे है जिसके घर में सोना होगा 
अफसर शाही रिश्वत लेकर अपने रिश्तेदार भरेंगे 
वही योग्य कहलायेगा जो दिन में दो के चार करेंगे ||

जो जितना मोटा अपराधी कलयुग में भगवान वही है 
बेईमानों  के राज तन्त्र में भारत की पहचान यही है ||

नौ दिन घर घर में माता के जयकारे गाये जायेंगे 
और रात नवजात लाडली की हत्या करके आयेंगे 
कभी सामूहिक कभी अकेले नोचेंगे नारी के तन को 
और अगले दिन यही दरिन्दे रौन्देंगे बेसुध बचपन को 

ऐ भारत की सीता माता तेरा अब सम्मान नहीं है 
बेईमानों  के राज तन्त्र में भारत की पहचान यही है ||

मनोज नौटियाल 








थक कर मृत्यु सभा में सबको रुकना होगा चलते चलते

























थक कर मृत्यु सभा में सबको रुकना होगा चलते चलते 

चिता चपल की लपटों में तन राख बनेगा जलते जलते ||



दुनिया दारी की बाजारी अंकगणित का प्रश्न नहीं है 
रिश्तों की घट जोड़ उधारी स्वार्थ रहित शुभ स्वप्न नहीं है 
अपने मन के बीतराग को कौन समझ सकता है बेहतर 
आत्म तत्व की सहज समाधि नहीं मिली माया में रहकर ||

बूढा वृक्ष बनेगा यह तन इक दिन आखिर झुक जाएगा 
जीवन नभ में लाल आवरण फैलेगा दिन ढलते ढलते ||

राग द्वेष से उपजा छल बल दान दंभ का ही देता है 
मन कल्मष करता है केवल मान भंग निश्चित होता है 
प्रेम मन्त्र है मानव् सेवा आत्म तुष्टि का मूल यही है 
परहित की हो तीव्र पिपाशा सत्य धर्म प्रतिकूल यही है ||

पञ्च तत्व का भौतिक दर्शन यह तन सत्य नहीं है बंधू 
आत्म बोध के अभिलेखों को पढ़ते जा नित बढ़ते बढ़ते ||

रंगमंच में हर नाटक का केंद्रबिंदु ज्यूँ अभिनेता है 
उस ईश्वर के अंशी हैं हम पात्र वही हमको देता है 
दुःख सुख की दोलन शाला में दर्शक भी तू नर्तक भी तू 
आंसू हो या हंसी लबों पर भोगों का प्रवर्तक भी तू ||

कितने ही सरताज हुए हैं , बड़े बड़े थे शाह शिकंदर 
         आखिर क्या पाया उन सब ने मानवता से लड़ते लड़ते ||......मनोज