बुधवार, 5 जून 2013

पूर्ण कलश लेकर अर्पण का अर्ध्य तुम्हे प्रेषित कर डाला





पूर्ण कलश लेकर अर्पण का अर्ध्य तुम्हे प्रेषित कर डाला
प्रतिक्षण तन मन चाह रहा है प्रत्युत्तर की शुभ जयमाला ||

प्रेम साधना जाप निरंतर युगों युगों से तुम्हे पुकारे
मन्त्र तुम्हारा नाम बनाकर मेरा मन हर सांस उचारे
व्याकुलता के हवन कुंड में विरह अग्नि की उठती लपटें
क्रूर समय के भूत निशाचर विघ्न हेतु नित इत उत झपटें

जाने कब  से प्रतीक्षित मै ,फेर रहा  साँसों की माला
प्रतिक्षण तन मन चाह रहा है प्रत्युत्तर की शुभ जयमाला ||

स्वप्न जगत पर टंकी हुयी कुछ पिछले जन्मो की घटनाएँ
मानस पर चलचित्र अधूरे उकरें और फिर से खो जाएँ 
चित्र तुम्हारा मन के कोरे कागज पर है यंत्र उकेरा 
ध्यान लगाऊं जब भी गहरा साक्ष्य बना है घोर अँधेरा ||

अमृत की चाहत में पी है मैंने घट घट भर कर हाला ||
प्रतिक्षण तन मन चाह रहा है प्रत्युत्तर की शुभ जयमाला ||

साधन तुमको मान लिया है अनुष्ठान का धेय तुम्ही हो 
सुफल साधना ज्ञान तुम्ही हो अनुष्ठान  का गेय तुम्ही हो 
भंग न हो जाए यह पूजा मोह पाश की बरसातों में 
मेरी प्रतीक्षा का आसन डोला है अनगिन रातों में 

मन मनोज ने प्रणय क्षणों को कई बार कल्पित कर डाला 
प्रतिक्षण तन मन चाह रहा है प्रत्युत्तर की शुभ जयमाला || ...मनोज 





3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी यह रचना कल शुक्रवार (07 -06-2013) को
    http://blogprasaran.blogspot.in ब्लॉग प्रसारण के
    "विशेष रचना कोना" पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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  2. सुन्दर प्रस्तुति..।
    साझा करने के लिए आभार...!

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