गुरुवार, 6 फ़रवरी 2025

मेरी पहली कविता जैसी

मेरी पहली कविता जैसी....

बचपन का एहसास जवानी की दहलीजों पर आया जब
प्यार अनकहा यादों की मासूम सरहदों पर आया जब ll
अक्सर पहला प्यार अधूरा किस्सा होता है किस्मत का
और दूसरा प्यार जवानी की जिद भरने को आया जब।।
तब से लेकर मासूमियत की परिभाषा है तुम जैसी
मेरी पहली कविता जैसी....।।

मेरी पहली कविता जैसी चंचलता का सादापन हो
मेरे जीवन में तुम ही बस मेरा एक अधूरापन हो।।
घायल मन की पागल चिंता जब लिखती है कविता कोई
उस कविता में मेरे मन के कल्पवृक्ष का तुम चंदन हो।।
उस चन्दन की शीतलता में तुम ही हो शीतलता जैसी
मेरी पहली कविता जैसी....।।

चन्दन की परछाई में ही मैंने तो अब तक खुद को जाना
रफ कॉपी से बनी डायरी में बुन बैठा मैं ताना बाना।।
उन ताने बाने की कविता को जब भी सुनता है कोई
सब कहते हैँ, उस साँवरिया से है तेरा नेह पुराना।।

कैसे समझाऊं सबको मैं, वो तो थी बहती  सरिता सी
मेरी पहली कविता जैसी....।।

बहती सरिता थी वो मिलने को अपने सागर से प्यासी
कैसे मिलती मुझसे जिसका जीवन बन बैठा बनवासी
कभी नहीं कह पाया उससे अपने मन की व्यथा कथा को
मेरी तृष्णा आजीवन अब सदा रहेगी प्यासी प्यासी।।
यूं  ही जीवन की इच्छाएं,शब्दों  में लिक्खी कविता सी।।
मेरी पहली कविता जैसी....।।

सर्वाधिकार सुरक्षित
मनोज नौटियाल

शुक्रवार, 3 जनवरी 2025

चंडी ध्वज स्तोत्रम।

चंडी ध्वज स्तोत्रम्   सही दिशा# ब्रह्मराक्षस
नित्य प्रति इसका पाठ करै और अपने जीवन मै परिवर्तन देखै #follower  #friends 
पहले जल हाथ मै लै और यह पढे 
ॐ अस्य श्री चंडी ध्वज स्तोत्र मन्त्रस्य मार कंडेय रिषि अनुष्टुप छंदः श्रां बीजं श्रीं शक्ति श्रूं कीलकं मम बान्छताथॅ सिद्यरथे जपे बिनियोगः 
ऊ श्रीं नमो जगत प्रतिष्ठायै दैब्यै भूत्यै नमो नमः 
परमानंद रूपिन्यै नित्यायै सततं नमः 
नमस्तेस्तु महा देबी पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं दे हि मे सदा ।
रक्ष मां शरन्ये देवि धन धान्य प्रदायनी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा ।
नमस्तेस्तु महाकाली पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा ।
नमस्तेस्तु महा लछमी  पर ब्रम्ह स्वरूपणी  
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा ।
नमो महा सरस्वती देवी पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
नमो ब्राम्ही नमस्तेस्तु  पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
नमो माहेश्वरी देवी पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
नमस्तेस्तु च कोमारी पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
नमस्ते बैष्णबी देबी पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
नमस्तेस्तु च बाराही पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
नारसिंही नमस्तेस्तु पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
नमो नमस्ते इंद्राणी पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
नमो नमस्ते चामुंडे पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
नमो नमस्ते नन्दायै पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
रक्तदंते नमस्तेस्तु पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
नमस्तेस्तु महा दुर्गे पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
शाकंभरी नमस्तेस्तु पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
शिव दूती नमस्तेस्तु पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
नमस्ते भ्रामरी देवि पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
नमो नवग्रह रूपे पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
नव कूट महादेवी पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
स्वणॅ पूरणे नमस्तेस्तु पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
श्री सुन्दरी नमस्तेस्तु पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
नमो भगवति देवि पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
दिब्य योगिनी नमस्तेस्तु पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
नमस्तेस्तु महा देबी पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
नमो नमस्ते सावित्री पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा  
जय लक्ष्मी नमस्तेस्तु  पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
मोक्ष लक्ष्मी  नमस्तेस्तु पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
रक्ष माम शरन्ये देवि पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
चंडी ध्वज मिदं स्तोत्रम् सरब काम फल प्रदं 
राजते सरब जन्तुनां वशीकरण साधनं ।।

इस चंडी ध्वज स्तोत्र को पाठ करने से सभी कामनाये सफल हो जाती है अधिक कहने की जरूरत नही है यह स्तोत्र स्वयं बोल रहा है राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा  केवल माता के सामने एक दीपक जलायै  पाठ नित्य करै घर पर चंडी ध्वज लगायें  मै जादा नही कहूँ गा आप स्वयं करके देखै 41दिन लगातार नियम से करै इतने मै आपको समझ आ जायेगा परिवर्तन  सभी प्रकार से लेकिन नियम से रोज करना है  
कृपया 41 दिन बाद मुझसे जरूर बताये अभी तक मेरा अनुभव  था आपका भी तो पता लगे धन्यवाद 

जय माँ राज राजेश्वरी  ।।
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा