जूनून -ए-इश्क में आबाद ना बर्बाद हो पाए
मुहब्बत में तुम्हारी कैद ना आज़ाद हो पाए ||
कहानी तो हमारी भी बहुत मशहूर थी लेकिन
जुदा होकर न तुम शीरी न हम फरहाद हो पाए ||
न कुछ तुमने छुपाया था न कुछ हमने छुपाया था
न तुम हमदर्द बन पाए ना हम हमराज हो पाए ||
जुदाई के लिए हम तुम बराबर हैं वजह हमदम
जिरह तुम भी न कर पाए न हम जांबाज हो पाए ||
ग़लतफहमी हमारे दरमियाँ बेवजह थी लेकिन
न तुम आये मनाने को न हम नाराज हो पाए ||
गुरूर -ए-हुश्न में तुम थे गुरूर-ए-इश्क में हम थे
न हम नाचीज कह पाए न तुम नायाब हो पाए ||
अभी भी याद आती है नजर की वो खता पहली
न तुम नजरे झुका पाए न हम आदाब कह पाए ||
जूनून -ए-इश्क में आबाद ना बर्बाद हो पाए
मुहब्बत में तुम्हारी कैद ना आज़ाद हो पाए ||................ manoj
ग़लतफहमी हमारे दरमियाँ बेवजह थी लेकिन
जवाब देंहटाएंन तुम आये मनाने को न हम नाराज हो पाए ...
भई वाह ... लाजवाब शेर गूंथे हैं सभी ... सुभान अल्ला ... मस्त गज़ल बन पड़ी है ...
आभार आपका दिगंबर जी
हटाएंतुम्हारी कैद न आजाद हो पाए......जबर्दस्त।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद भाई जी
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