शुक्रवार, 26 जनवरी 2024

जूनून -ए-इश्क में आबाद ना बर्बाद हो पाए मुहब्बत में तुम्हारी कैद ना आज़ाद हो पाए

















जूनून -ए-इश्क में आबाद ना बर्बाद हो पाए 
मुहब्बत में तुम्हारी कैद ना आज़ाद हो पाए ||

कहानी तो हमारी भी बहुत मशहूर थी लेकिन
जुदा होकर न तुम शीरी न हम फरहाद हो पाए ||

न कुछ तुमने छुपाया था न कुछ हमने छुपाया था
न तुम हमदर्द बन पाए ना हम हमराज हो पाए ||

जुदाई के लिए हम तुम बराबर हैं वजह हमदम
जिरह तुम भी न कर पाए न हम जांबाज हो पाए ||

ग़लतफहमी हमारे दरमियाँ बेवजह थी लेकिन
न तुम आये मनाने को न हम नाराज हो पाए ||

गुरूर -ए-हुश्न में तुम थे गुरूर-ए-इश्क में हम थे
न हम नाचीज कह पाए न तुम नायाब हो पाए ||


अभी भी याद आती है नजर की वो खता पहली
न तुम नजरे झुका पाए न हम आदाब कह पाए ||

जूनून -ए-इश्क में आबाद ना बर्बाद हो पाए
मुहब्बत में तुम्हारी कैद ना आज़ाद हो पाए ||................ manoj

4 टिप्‍पणियां:

  1. ग़लतफहमी हमारे दरमियाँ बेवजह थी लेकिन
    न तुम आये मनाने को न हम नाराज हो पाए ...
    भई वाह ... लाजवाब शेर गूंथे हैं सभी ... सुभान अल्ला ... मस्त गज़ल बन पड़ी है ...

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  2. तुम्‍हारी कैद न आजाद हो पाए......जबर्दस्‍त।

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