इस जीवन की अंकगणित में जोड़ घटाने की चाहत में
छोटे छोटे गुणा भाग की समीकरण हल कैसे होगी ?
अपने और पराये पन की रोज परीक्षाएं होती हैं
कितना प्यार करें दूजे को रोज समीक्षाएं होती हैं
एक नयाँ बंधन जब बंधन बन कर पीड़ाएँ देता है
मन में एक नएँ गठबंधन की नव इच्छाएं होती हैं ।।
कुछ खोने के डर से चुप हर रिश्ते सिसकारी लेते हैं
मरे हुए सम्बन्धों के, इस जग में हलचल कैसे होगी ?
शातिर आंखें लगी हुई हैं, सपनों की सौदेबाजी में
अपने ही अपने बैठे हैं ,अपनों की धोखेबाजी में
चतुराई से पास बिठाया , बाजीगर को बाजीगर ने
दोनों ठगे हुए व्यापारी , खुश हैं अपनी बर्बादी में ।।
जल जाने के डर से सबने , सीलन में रहना सीखा है
डरे हुए लोगों के जग में , मीरा पागल कैसे होगी?
मुर्दा एहसासों को तुमको , इक दिन जिंदा करना होगा
आज नहीं तो कल खुद तुमको खुद शर्मिंदा करना होगा
आखिर कब तक ढो पाओगे , ऐसे सम्बन्धों की लाशें
आखिर मन आजाद परिंदा , रिहा परिंदा करना होगा ।।
जग की परम्पराओं में जो , दरिया बन कर मौन हो गया
उसके जीवन की गंगा में , पावन कल-कल कैसे होगी ?
🌹🌹🌹🌹🌹मानोज नौटियाल🌹🌹🌹🌹🌹
10-03-19
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