वो बात पूछती है अक्सर सहेलियों में
क्या प्यार की लकीरें सच हैं हथेलियों में ||
आया जवाब ऐसा इजहार -ए- मुहोब्बत
ना में जवाब ढूंढो हाँ का पहेलियों में ||
उसकी हसीन सूरत , कैसे बयाँ करूँ मै
हसीन चाँद लाखों जैसे जलें दियों में ||
गुस्ताख ये नजर भी हर सू उसे निहारे
फूलों की शोखियों में रंगीन तितलियों में ||
नाराजगी तुम्हारी मासूमियत भरी हैं
जैसे छुपी मुहोब्बत हो माँ की गालियों में ||
इनकार से डरूं क्या जब प्यार हो गया है
कब से खड़ा यहाँ मै बैठा सवालियों में ||
हर दर्द हो फ़ना जब तेरे करीब आऊँ
रौशन रहे अमावस जैसे दिवालियों में ||
नादान दिल हमारा , सुनता नहीं हमारी
पंछी उड़े अकेला , अन्जान डालियों में ||
हर गीत या गजल की बस एक इल्तजा है
सजती रहे जुबां पर , हो प्यार तालियों में ||......मनोज
बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल,आभार.कमेंट्स वेरिफिकेशन से परेशानी तो होती ही है.
जवाब देंहटाएंआया जवाब ऐसा इजहार -ए- मुहोब्बत
जवाब देंहटाएंना में जवाब ढूंढो हाँ का पहेलियों में ...
क्या बात है ... बहुत खूब शेर कहा है ..