पूर्व में लिखित एक रचना
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वैसे तो जीवन की आधी उम्र कटी है अय्यारी में
रावण भी था राघव भी था , मैं अपनी दुनियादारी में।।
डूब रही हो नाव , खिवय्या, तिनका भी तो बन जाता है
तिनका ,तिनका तरसा हूँमैं ,अपनों की केसर क्यारी में ।।
जख्म अधूरे देकर ,उसने जिंदा छोड़ दिया था मुझको
जिनको अपना मान ,चला था , अव्वल थे वो गद्दारी में।।
किस्मत के अवशेष फैसले , रहने ही दो तो अच्छा है
खाता , बही , सुरक्षित हैं सब , यादों की अलमारी में ।।
तुरपन रिश्तों की मत खोलो ,अच्छा है कुछ ना ही बोलो
आह दबी ही रह जाती है , दर्द छलकता ,सिसकारी में ।।
****************मानोज****************
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