सोमवार, 6 जनवरी 2020

मन प्यासा

मित्र ग़ाज़ियाबादी जी की लिखी दो पंक्तियों पर मेरी गुस्ताखी .....
क्यूँ  न  मन  मेरा  प्यासा हो ?
जन्मों की तुम अभिलाषा हो ।

समीकरण सी दुनियाँ दारी
धर्मों की तुम परिभाषा हो ।।

शून्य जगत है , और जगत में
तुम जीवन की , जिज्ञासा हो ।।

मैं हूँ  पांडव  , की निर्धनता
तुम , उस घर की , दुर्वासा हो।।

मित्र , गाजियाबाद,  हमारा
तुम उस घर की ,इक आशा हो।।

जय हो ,😍😍😍😍😍

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