रविवार, 17 मार्च 2013

खर -पतवार सरीखे मजहब खा जायेंगे सुन्दर वन को ||




सत्य सनातन व्याकुल होकर देख रहा अपने उपवन को 

खर -पतवार सरीखे मजहब खा जायेंगे सुन्दर वन को ||


मैंने ही सारी वशुधा को एक कुटुंब पुकारा था 

मेरी ही साँसों से निकला शांति पाठ का नारा था ||

दया धर्म मानवता जैसी सरल रीत मैंने सिखलाई 

परहित धर्म आचरण शिक्षा मैंने ही सबको बतलाई ||


क्या हालत कर दी हे मानव भूल गया क्यूँ अंतर्मन को 

खर -पतवार सरीखे मजहब खा जायेंगे सुन्दर वन को ||


धरती , अम्बर , चन्द्र ,दिवाकर का सम्मान सिखाया मैंने 

पेड़ , पुष्प जल -थल जंगल का कर सम्मान बताया मैंने ||

होम , हवन से घर- घर तेरे प्राण वायु को शुद्ध किया था 

संयम ,नियम योग आसन से तन -मन को प्रबुद्ध किया था ||


सत्य अहिंसा छोड़ चला क्यूँ भूल गया क्यूँ वेद वचन को 

खर -पतवार सरीखे मजहब खा जायेंगे सुन्दर वन को ||


मैंने कर्म बाँट कर सबको सामाजिक दायित्व बताया 

गुण पर आधारित जीवन हो लोकमान्य नेतृत्व दिखाया 

मर्यादा की रेखाओं में जीवन की भाषा समझाई 

सदाचार की परिपाठी में सत्य दरश आशा बतलाई ||


मर्यादा अब गिद्ध बन गयी और आचरण बेचे तन को 

खर -पतवार सरीखे मजहब खा जायेंगे सुन्दर वन को ||


मेरा मार्ग राम को भाया , रामराज्य परचम लहराया 

योगेश्वर ने गीता गा कर मेरा ही विस्तार सुनाया 

सरल सुगम है मेरा ईश्वर कण कण में रहता है नश्वर 

नहीं मिटा पायेगा मुझको कोशिश तू चाहे जितनी कर ||


जौहरी बन फिर परख मुझे , क्यूँ फेंक रहा मूरख कुंदन को 

खर -पतवार सरीखे मजहब खा जायेंगे सुन्दर वन को ||

 मनोज नौटियाल 

शुक्रवार, 15 मार्च 2013

मुहोब्बत की भला इससे बड़ी सौगात क्या होगी जला कर घर खड़ा हूँ मै यहाँ अब रात क्या होगी








ये लीजिये दोस्तों ...कलम के कुछ और एहसास ख़ास आपके लिए |



मुहोब्बत की भला इससे बड़ी सौगात क्या होगी 
जला कर घर खड़ा हूँ मै यहाँ अब रात क्या होगी ||

गुनाहों में गिना जाने लगा दीदार करना अब 
हसीनो के लिए इससे बड़ी खैरात क्या होगी ||

सुबह से शाम तक देखे कई पतझड़ दरीचे में 
गरजते बादलों की रात है बरसात क्या होगी ||

जरा नजरें मिलाकर बोल दे तू दोस्त है मेरा 
बिना जाने तुझे ऐ दोस्त दिल की बात क्या होगी ||

मुझे दुःख है तुम्हारे घर बड़े हैं दिल बिकाऊ हैं 
मुझे दिल से समझने की तेरी औकात क्या होगी ||

जलाते हैं बिना कारण किसी का घर किसी का दर 
सियासत दार चिलायें धरम क्या जात क्या होगी||


पसीना खून का करके पिता ने बेटियां ब्याही 
जहाँ दूल्हे बिकाऊ हों वहां बारात क्या होगी ||

अकेला खेलता शतरंज है जो बंद कमरे में 
उसे शै क्या हराएगी , बिशात-ए-मात क्या होगी ||

     मनोज नौटियाल 

गुरुवार, 7 मार्च 2013

ममता की आधारशिला तुम, प्रेममयी नूतन आशा हो




ममता की आधारशिला तुम, प्रेममयी नूतन आशा हो 
मानवता की केंद्रबिंदु हो , नवजीवन की परिभाषा हो 

माँ बनकर सबसे पहले तुम मिली मुझे पहली परछाई 
नौ माहों की कठिन तपस्या , माँ तुमने निस्वार्थ निभाई 
करुणा की मूरत बनकर जो बचपन को आधार दिया है 
कर्ज कभी ना दे पाऊंगा माँ तुमने जो प्यार किया है ||

सबके जीवन में पग पग पर तुम नूतन सी जिज्ञासा हो 
मानवता की केंद्रबिंदु हो , नवजीवन की परिभाषा हो 

मेरी तुतलाती बोली को सबसे पहले तुमने जाना 
मेरी किलकारी का मतलब क्या है ये तुमने पहचाना 
मीठी लोरी सुना सुना कर मुझे सुलाया तुम ना सोयी 
जब भी मेरे आंसू आये मेरे संग माँ तुम भी रोई ||

शब्द जाल में पहला अक्षर माँ तुम ही पहली भाषा हो 
मानवता की केंद्रबिंदु हो , नवजीवन की परिभाषा हो ||

ऊँगली तेरी पकड़ पकड़ कर तुमसे चलना सीखा मैंने 
जैसे तुम कहती थी सबको कहना वैसे सीखा मैंने 
मुझे खिलाया सबसे पहले तुमने ही नमकीन निवाला 
मेरे पहले जन्म दिवस पर दीप जला कर किया उजाला ||

तेरा प्रेम बहे माँ अविरल लाल भला कैसे प्यासा हो 
मानवता की केंद्रबिंदु हो , नवजीवन की परिभाषा हो ||

राखी के बंधन से जाना नवल प्रेम बंधन का गहना 
बाल सखी , मेरी मनुहारी सुख -दुःख संगी मेरी बहना
कितने ही भावों में नारी प्रेम मुखर होता है जग में 
पुरुष कभी भी नहीं पूर्ण है बिना तेरे जीवन पग पग में ||

जीवन धन्य बनाया तुमने जीने की तुम अभिलाषा हो 
मानवता की केंद्रबिंदु हो , नवजीवन की परिभाषा हो ||

मनोज नौटियाल 

बुधवार, 6 मार्च 2013

मेरी जीवन रामायण में एक अकेला मै वनवासी





मेरी जीवन रामायण में एक अकेला मै वनवासी 
मै ही रावण मै ही राघव द्वन्द भरी लंका का वासी 
कभी अयोध्या निर्मित करने की मन में अभिलाषा आये 
डूब गयी वह विषय सिन्धु में ,जब तक निर्मित हुयी ज़रा सी ||

सुख -दुःख की आपाधापी में जीवन की परिभाषा डोले 
मन की कल्पित माया मेरी सही -गलत के पात्र टटोले 
समय चक्र को भेद सका ना अब तक कोई जगत निवासी 
मै भी कटपुतली हूँ  हर पल, जिसे  नचाये कण -कण वासी ||

धर्म समझ पाऊं भी कैसे , परिभाषाओं की मंडी में 
सत्य परत दर परत गूढ़ है , अनुभवशाली पगडण्डी में 
सांस -सांस में प्राणवायु के साथ मृत्यु भी प्यासी- प्यासी 
जितना चाहूँ भागूं लेकिन सत्य सदा रहता  अविनाशी ||

मर्यादा के पाठ पढ़े जब  रोती -मिली द्रोपदी -सीता 
कभी नहीं समझा है कोई एहसासों की सच्ची गीता 
ना मै अर्जुन सम योद्धा हूँ ना ही वीर भीष्म विश्वासी 
दुनियादारी में उलझा हूँ , कैसे जाऊं काबा -काशी ||

पांच इन्द्रियों के छल -बल से कितनी बार हार कर रोया 
जीवन पथ पर चलते सोचूं क्या है पाया क्या है खोया 
सोच सोच कर मन भटका है , हुआ बावरा भोग विलासी 
पश्चाताप हुआ भी लेकिन, माया ने कर दिया उदासी ||

मेरी जीवन रामायण में एक अकेला मै वनवासी 
 मै ही रावण मै ही राघव द्वन्द भरी लंका का वासी||

मनोज  नौटियाल 























मंगलवार, 5 मार्च 2013

होली गीत (ब्रिज मंडल )






कान्हा ने होरी खेलन को टोली मस्त बनायी है 

ग्वाल ,बाल सब रंग डारे गोपी डरकर घबराई है 

ब्रज मंडल में बरसाने से राधा जी की सखियों ने 

रंग लायी भर भर पिचकारी धूम मचाने आई है ||


पकड़ो -पकड़ो - इसको श्याम बड़ा नटखट ये 

चुपके - छुपके बैठा गोपी संग घूंघट में 

घेर लियो है श्याम सलोना राधा जी मुस्काई है 

रंग लायी भर भर पिचकारी धूम मचाने आई है ||


कण कण रंगरेज हुआ होरी के रंगों में 

ढोलक की तालों में रसमय तरंगो में 

रंगों की रंगोली ब्रिज के कण कण में बिखरा दी है 

रंग लायी भर भर पिचकारी धूम मचाने आई है ||


रंगों का महारास कान्हा के संग आज 

मुरली की तान गान झूमे सब ग्वाल बाल 

गोपी संग राधा जी झूमे ,नाचे किशन कन्हाई है 

रंग लायी भर भर पिचकारी , धूम मचाने आई है ||

इस घर- उस घर आँगन देखो क्या मची धूम 

रंग डारे सभी आज नाचे सब घूम घूम 

देखो -देखो ब्रिज मंडल में कैसी मस्ती छाई है 

रंग लायी भर भर पिचकारी धूम मचाने आई है ||

सबको नचाये जो, नाच रहा बेसुध है 

पालन कर्ता खुद ही खोया सब सुध-बुध है 

चन्द्र वंश के योगेश्वर ने लीला आज रचाई है 

रंग लायी भर भर पिचकारी धूम मचाने आई है ||

सुर -नर -गंधर्भ सभी गोकुल में आये हैं 

नारी परिधान डार , कान्हा संग नाचे हैं 

भूतेश्वर बाबा कैलाशी संग में मातु भवानी है 
                              
रंग लायी भर भर पिचकारी धूम मचाने आई है ||


-:मनोज नौटियाल :-

सोमवार, 4 मार्च 2013

वो बात पूछती है अक्सर सहेलियों में



वो बात पूछती है अक्सर सहेलियों में 
क्या प्यार की लकीरें सच हैं हथेलियों में ||


आया जवाब ऐसा इजहार -ए- मुहोब्बत
ना में जवाब ढूंढो हाँ का पहेलियों में ||

उसकी हसीन सूरत , कैसे बयाँ करूँ मै
हसीन चाँद लाखों जैसे जलें दियों में ||

गुस्ताख ये नजर भी हर सू उसे निहारे
फूलों की शोखियों में रंगीन तितलियों में ||

नाराजगी तुम्हारी मासूमियत भरी हैं
जैसे छुपी मुहोब्बत हो माँ की गालियों में ||

इनकार से डरूं क्या जब प्यार हो गया है
कब से खड़ा यहाँ मै बैठा सवालियों में ||

हर दर्द हो फ़ना जब तेरे करीब आऊँ
रौशन रहे अमावस जैसे दिवालियों में ||

नादान दिल हमारा , सुनता नहीं हमारी
पंछी उड़े अकेला , अन्जान डालियों में ||

हर गीत या गजल की बस एक इल्तजा है
सजती रहे जुबां पर , हो प्यार तालियों में ||......मनोज

तू खुश रहे हमेशा दिल से मेरी दुआ है














तू खुश रहे हमेशा दिल से मेरी दुआ है 
हम तुम बुरे नहीं हैं ये वक्त ही बुरा है ||

ये प्यार भी अजब है किसने इसे इसे बनाया
जिसने किया हमेशा रोता हुआ मिला है ||

पत्थर भी बोलते हैं , कारीगरी अगर हो
इंसानियत भुलाकर इंसान बुत बना है ||

कितना सरल तरीका सम्बन्ध तोड़ने का
बस फोन का उन्होंने नंबर बदल दिया है ||

सब दोस्त पूछते हैं ये हाल क्यूँ बनाया
उनको खबर नहीं है ये प्यार का नशा है ||

दुनिया मुझे सता कर सौ जख्म भी अगर दे
कुछ भी नहीं बिगड़ता माँ- बाप की दुआ है ||

मंदिर नहीं गया मै -ये सोचकर कि मेरे
भगवान् का बसेरा कण -कण बसा हुआ है ||

माना नयाँ -नयाँ हूँ ईमान के शहर में
क्या सोच कर हमारी कीमत लगा रहा है ||

नफरत जहाँ पली है , हस्ती वही मिटी है
               बस प्यार ही जहां में रहता हरा भरा है ||..मनोज

शुक्रवार, 1 मार्च 2013

सुबह की ख्वाहिसों में रात की तन्हाईयाँ क्यूँ हैं




सुबह की ख्वाहिसों में रात की तन्हाईयाँ क्यूँ हैं 
नहीं है तू मगर अब भी तेरी परछाईयाँ क्यूँ हैं ||

नहीं है तू कहीं भी अब मेरी कल की तमन्ना में 
जूनून -ए - इश्क की अब भी मगर अंगड़ाइयां क्यूँ हैं ?

मिटा डाले सभी नगमे मुहोबत्त के तराने सब
अमर अब भी मेरे दिल में तेरी रुबाइयां क्यूँ हैं ||

बुरा ये वक्त था या मै , नहीं मालूम ये मुझको
गिनाते लोग मुझको आपकी अच्छाइयां क्यूँ हैं ||

सुना है प्यार का घर है खुदा के नूर से रौशन
हमारे प्यार में फिर हिज्र की सच्चाईयां क्यूँ है ||

सुबह से शाम तक मिलती नहीं फुर्सत जमाने से
लबों पर है हंसी दिल में बसी तन्हाईयाँ क्यूँ हैं ||

मुहोब्बत हूँ कोई तो एक दिन दिल में बसाएगा
तुम्हारे हुश्न पर पड़ने लगी ये झाइयां क्यूँ हैं ||

मिटा डाली सभी यादें कहीं दिल में दफ़न कर दी
बिना बदनामियों के मिल रही रुसवाइयां क्यूँ हैं ||

सुबह की ख्वाहिसों में रात की तन्हाईयाँ क्यूँ हैं
नहीं है तू मगर अब भी तेरी परछाईयाँ क्यूँ हैं ||.................manoj