धैर्य के दीप को तुम बुझाना नहीं
रात का आखिरी अब पहर शेष है
मौत को सोचने की जरुरत नहीं
जिंदगी की अभी दोपहर शेष है ।।
सत्य के सेतु पर तुम स्वयं धर्म हो
तुम स्वयं कर्म फल तुम स्वयं कर्म हो
स्वार्थ के इस भयानक कुरुक्षेत्र में
भाग्य के देवता का तुम्ही मर्म हो ।।
प्रीत के गीत में सत्य मिल जाएगा
कृष्ण की अनकही कुछ बहर शेष हैं
धैर्य के दीप को तुम बुझाना नहीं
रात का आखिरी अब पहर शेष है।।
तू स्वयं में स्वयं को स्वयं खोज ले
मैं छिपा है जहाँ वो भरम खोज ले
छोड़ कर धारणाये सभी ज्ञान की
घोर अज्ञानता में धरम खोज ले ।।
दो कदम पर हिमालय खड़ा शांति से
बस अहंकार का इक शहर शेष है
धैर्य के दीप को तुम बुझाना नहीं
रात का आखिरी अब पहर शेष है।।
एक उत्तर मिलेगा जगत से कभी
राम के कृष्ण के उस भगत से कभी
है छिपा वो तेरे प्रश्न में ही कहीं
खोज ले पारखी बन जुगत से कभी।।
कामना के कलश में विषय भोग की
वासना का हलाहल जहर शेष है
धैर्य के दीप को तुम बुझाना नहीं
रात का आखिरी अब पहर शेष है।।
मनोज नौटियाल
08-02-2017
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