#एक_ताजा_गीत_आप_सभी_के_मन_के_द्वार
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बरसों से जो देख रही थी , ये आँखें मायावी सपना
रात खुली वो सच्चाई का हाथ थाम कर दूर हो गया ।।
मैं हठयोगी सा बैठा था ,जिस सिंदूरी चंदन वन में
जाने कितने नाग विषैले लिपटे थे सबकी डाली में
मेरे सभी मनोरथ मन के , तन पर मायूसी ओढ़े थे
संयम के भुजबन्द खड़े थे, युगों युगों से रखवाली में।।
मैं अपने पौरुष को निर्बल, होते कैसे देख सकूंगा ?
यही सोच मैं सारा जीवन , अहंकार में चूर हो गया ।।
रोज पूछता रहा रास्ते, मैं अपनी ही परछाई से
एक अमावस्या में वो भी , कृष्ण पक्ष के साथ हो गई
मेरे सभी आस्थाओं के, दीपक भी तो निर्मोही थे
दीपशिखाएँ उनकी जलकर , पल भर में ही राख हो गई ।
अंधकार में गिरकर उठने, उठ कर गिरने से डरता था
इसीलिए मैं एक जगह पर, खड़े खड़े मजबूर हो गया ।।
और छलावे ना छल लें , अब मेरे मन की सच्चाई को
आने वाले किरदारों को , अब खुद ही रचने बैठा हूँ
अब बनवास नहीं देना है , किसी कैकई ने राघव को
उनके जीवन की रामायण अब खुद ही लिखने बैठा हूँ ।।
आये आकर चले गए जो , उनसे सीखा आना जाना
इसीलिए मैं आज शहर में , बिना बात मशहूर हो गया ।।
जो अनुभव की पीड़ा मैंने , संचित की है इस झोली में
सोच रहा हूँ वर्षों से मैं , इसको कहीं विसर्जित कर दूं
खुद ही खुद को तर्पण दे दूं , अपने जीवन की गंगा में
खुद्दारी के अग्नि कुंड में , प्रेम आहुति अर्पित कर दूं ।।
कहते हैं जो अपनी सारीजीवन पुस्तक खुद लिखते हैं
वो दुनियाँ से जाने पर भी , इस दुनियां का नूर हो गया ।।
🍂🍂🍂🍂🍂@सर्वाधिकार सुरक्षित🍂🍂🍂🍂
🌺🌺🌺🌺🌺🌺मनोज नौटियाल🌺🌺🌺🌺🌺
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