मंगलवार, 19 फ़रवरी 2013

कृष्ण और सुदामा की मित्रता


मित्रों संसार में मित्रता का सबसे बड़ा उदाहरण है कृष्ण और सुदामा की मित्रता का वृत्तांत | उसी करुण मित्रता के दृश्य को एक रचना के माध्यम से लिखने का प्रयास किया है | कृपया आप अवलोकित करें |

एक बार द्वारिका जाकर बाल सखा से मिल कर देखो
अपने दुःख की करुण कहानी करूणाकर से कह कर देखो ||

हे नाथ ! दशा देखो घर की, दुःख को भी आंसू आयेंगे
तुम्हरी , मेरी तो बात नहीं बच्चों को क्या समझायेंगे ?
भूखी , नंगी व्याकुलता के दर्शन हैं उनकी आखों में
सब भिक्षा पात्र भयो रीतो , अब कैसे उन्हें मनाएंगे ?

तन पर वस्त्र आवरण केवल, वस्त्र रह गया है कहने को
बहुत हुआ स्वामी अब मानो ,और बचा क्या अब सहने को ||

ब्राह्मण है यह दीन सुदामा , सखा तीन लोक का स्वामी
संभव है वो भूल गया हो , बचपन की सब बात पुरानी
मै तो हर दिन चाहूँ जाना लेकिन डर है मुझे सुशीला
स्वार्थ छुपा है मिलन धेय में , सब जाने है अन्तर्यामी ||

वैसे भी कुछ नहीं पास में अपने कान्हा को देने को
खाली हाथ नहीं जाऊँगा , अपने कृष्णा से मिलने को ||

यदि तुम हाँ बोलो तो स्वामी चावल मांगू दूजे घर से
कह देना देवर कृष्णा को भाभी ने भेजें हैं घर से
मित्र वधू का चरण दंडवत कह देना उनको हे स्वामी
अपनी भाभी को कह देना शुभ आशीष हमेशा बरसे ||

कितने दिन अब और अमावास रात रहेगी यूँ कटने को
कितने दिन एकादश व्रत अब शेष रहें है यूँ रखने को ||

फटी पुरानी धोती तन पर बाहों में पोटल तांदुल की
चला सुदामा रोते -रोते मन में आशा मित्र मिलन की
नंगे पैर चुभे कंटक से पीड़ा से जागे व्याकुलता
दूर नजर आ रही द्वारिका , वैभव की सुन्दरतम झलकी ||

नगर देख कर विस्मय उपजा जैसे देख रहा सपने हो
कभी देखता स्वर्ण महल को कभी देखता खुद अपने को ||

मुख्य महल के द्वारपाल से लगा पूछने कृष्ण धाम को
द्वारपाल सब हंसकर बोले हे पंडित परिचय प्रमाण दो
बोला नाम सुदामा मेरा बाल सखा हूँ बनवारी का
सुनकर द्वारपाल चौंके सब लगे ताकने दीन- दाम को ||

सुनते ही दौड़े हैं मोहन मुख्यद्वार- स्वागत करने को
सभी रानियाँ चौंक पड़ी जब नंगे पैर चले मिलने को ||

मित्र मिलन की व्याकुलता मे भूल गयो मोहन सब सुध -बुध
मुख्य द्वार पर दीन दशा में देखा मित्र खड़ा है बेसुध
गले लगाया दीन-बंधू ने बाल सखा को रोते -रोते
मित्र मिलन की सुन्दर बेला मित्र प्रेम का दर्शन अद्भुत ||

धन्य हुआ मै मित्र सुदामा , आया है मुझसे मिलने को
रथ पर बैठाया माधव ने बोला राज महल चलने को ||

सिंघासन पर आसन देकर देख सुदामा के पग कंटक
व्याकुल होकर अश्रु धार से धोने लगे दया दुःख भंजक
पीताम्बर से पैर पोंछ कर , पञ्च द्रव्य अभिसेख कराया
भाव विभोर भयो सब देखत दृश्य बड़ा अंतर्मन रंजक ||

आज सुदामा सोच रहा सच कहती थी वो मिल कर देखो
अपने दुःख की करुण कहानी करूणाकर से कह कर देखो ||

सुनो सुदामा भाभी जी ने क्या भेजा देवर की खातिर
लगा छुपाने तांदुल पागल , धन वैभव का दृश्य देखकर
छीन लियो मोहन ने तांदुल बड़े चाव से लगे चबाने
पंडित सोच रहा ये तांदुल लाया मै बेकार यहाँ पर ||

दो मुट्ठी में दो लोकों का वैभव दान दिया पगले को
रोक लिया रानी ने बोली खुद भी कुछ चहिये रहने को ||

जाने की बेला पर सोचा, शायद कान्हा खुद दे देगा
शंशय में चल पड़ा सुदामा बिना दिए ही वापिस भेजा
सोच रहा क्यूँ कर आया मै बात समझती नहीं सुशीला
जो मांगे हुए पडोसी से हैं तांदुल वापिस कैसे होगा ||

टूटा छप्पर गायब देखा महल खड़ा देख्यो सोने को
रानी बनी सुशीला बैठी राजकुमार पुत्र अपने दो ||

फूट -फूट कर रोते रोते लगा कोसने अपने मन को
कितना पापी है यह पंडित जान सका ना मनमोहन को ||......manoj
 

1 टिप्पणी:

  1. वाह मनोज जी वाह आपने ऐसा सुन्दर चित्रण किया है मन शांत हो गया है, सुन्दर भावों से सुसज्जित शानदार धारदार लेखनी के लिए ढेरो बधाई स्वीकारें. सादर

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