सुबह की ख्वाहिसों में रात की तन्हाईयाँ क्यूँ हैं नहीं है तू मगर अब भी तेरी परछाईयाँ क्यूँ हैं ||
नहीं है तू कहीं भी अब मेरी कल की तमन्ना में जूनून -ए - इश्क की अब भी मगर अंगड़ाइयां क्यूँ हैं ? मिटा डाले सभी नगमे मुहोबत्त के तराने सब अमर अब भी मेरे दिल में तेरी रुबाइयां क्यूँ हैं ||
बुरा ये वक्त था या मै , नहीं मालूम ये मुझको गिनाते लोग मुझको आपकी अच्छाइयां क्यूँ हैं ||
सुना है प्यार का घर है खुदा के नूर से रौशन हमारे प्यार में फिर हिज्र की सच्चाईयां क्यूँ है ||
सुबह से शाम तक मिलती नहीं फुर्सत जमाने से लबों पर है हंसी दिल में बसी तन्हाईयाँ क्यूँ हैं ||
मुहोब्बत हूँ कोई तो एक दिन दिल में बसाएगा तुम्हारे हुश्न पर पड़ने लगी ये झाइयां क्यूँ हैं ||
मिटा डाली सभी यादें कहीं दिल में दफ़न कर दी बिना बदनामियों के मिल रही रुसवाइयां क्यूँ हैं ||
सुबह की ख्वाहिसों में रात की तन्हाईयाँ क्यूँ हैं नहीं है तू मगर अब भी तेरी परछाईयाँ क्यूँ हैं ||.................manoj
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (02-03-2013) के चर्चा मंच 1172 पर भी होगी. सूचनार्थ
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका मित्र |
जवाब देंहटाएंउम्दा गज़ल. अभिवादन.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रचना दीक्षित जी
जवाब देंहटाएंसुना है प्यार का घर है खुदा के नूर से रौशन
जवाब देंहटाएंहमारे प्यार में फिर हिज्र की सच्चाईयां क्यूँ है..
ये भी तो प्यार का ही एक रंग है ...
लाजवाब शेर है ...
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुतिकरण,सादर आभार।
जवाब देंहटाएं"ब्लॉग कलश"
भूली-बिसरी यादें