शनिवार, 9 सितंबर 2017

सागर के रेतीले तट पर ,लहरों की आवाजाही से

सागर के रेतीले तट पर ,लहरों की आवाजाही से
जाने कितने मोती बिखरे, सागर की लापरवाही से।।
कैसे बिन सीपी के अब हम, तन्हाई में जी पाएंगे ?
डर से सहमे  बिखरे मोती,  पूछ रहे हैं हरजाई से ।।

पूरनमासी के चंदा का पल दो पल का आकर्षण था
तेरी गहराई में हम सब,  की पावनता  का दर्पण था।।
आसमान छूने की जिद पर,  लांघ गया तू मर्यादाएं
भूल गया कैसे हम सबका ये जीवन तुझ पर अर्पण था ।।

जिस चंदा की खातिर तूने हमको छोड़ दिया था पगले
देख अमावस के अंधियारों में व्याकुल है तन्हाई से ।।

याद आते हैं दिन जब तेरी,  गहराई थी नाज हमारा
हम सब थे सुंदरता तेरी , और तू था सरताज हमारा ।।
हम सबके गम के आंसू पी ,कर तुम खारे बन बैठे थे
तू ही था हमदर्द हमारा , और तू ही हमराज हमारा ।।

आ ले चल फिर साथ हमे तू , बाट जोह कर बैठे हैं
ज्वार उठा जो थम जाएगा , उस चंदा की रुसवाई से ।।
डर से सहमे  बिखरे मोती,  पूछ रहे हैं हरजाई से ।।
सागर के रेतीले तट पर ,लहरों की आवाजाही से ।।
**************** मनोज नौटियाल **************
दिनांक-  09-09-2017