शुक्रवार, 23 अगस्त 2013

रिश्तों की केसर क्यारी में एहसासों के तटबंधों पर



रिश्तों की केसर क्यारी में एहसासों के तटबंधों पर
क्यों नफरत की नागफनी के कांटे बोना चाह रही हो
मिलकर के एकत्र किये जो संबंधों के पारस हमने 
क्यों स्वारथ के शापित जल से उनको धोना चाह रही हो ||

मेरे मन के दरवाजे की संयम की सांकल को तुमने 
पूर्ण समर्पण की तेजाबी बारिश बन कर तोड़ दिया है 
सम्मोहन के तीव्र मन्त्र से भंग हो गयी भीष्म साधना 
माया मन्त्र सिखा कर मुझको दोराहे पर छोड़ दिया है ||

अब भी बैरागी बस्ती में मेरी कुटिया खाली ही है 
क्यों तुम दुनिया के मेले में तनहा होना चाह रही हो ||

अब भी आशा के सूरज की कोमल धूप सुखा सकती है 
सच्ची चाहत के दामन में आंसू से आई सीलन को 
अब भी तेरे सूने मन की पथरीली चौखट के आगे 
तेरा एक इशारा जो हो न्योछावर कर दूं जीवन को ||

पहले ही खारे एहसासों से बंजर है मेरा जीवन 
क्यों तुम इस सूने आँगन में फिर भी रोना चाह रही हो ||

झूठे खाते नासमझी के जितने भी है उन्हें जलाकर 
सच्चाई के गंगाजल से चलो आचमन कर लेते हैं 
प्रेम हवन में दोनों मिलकर पश्चाताप आहुती डालें 
इक दूजे के मन मंदिर में पुनः आगमन कर लेते हैं ||

मै अपना सर्वश्व त्याग कर तुमको पाना चाह रहा हूँ 
क्यूँ तुम अपने मै के कारण मुझको खोना चाह रही हो 
रिश्तों की केसर क्यारी में एहसासों के तटबंधों पर
क्यों नफरत की नागफनी के कांटे बोना चाह रही हो||
------------------मनोज नौटियाल ------------------





गुरुवार, 22 अगस्त 2013

नए अघात मत करना मुहोब्बत की सलाखों से





अगर दुखती रगों को तुम मेरी सहला नहीं सकती 
नए अघात मत करना मुहोब्बत की सलाखों से 
छुओ न तुम ह्रदय ज्वालामुखी सा सुप्त रहने दो 
कहीं फिर जाग ना जाए तुम्हारे नर्म हाथों से ||

सिवा दो चार छालों के नहीं कुछ इस हथेली पर 
खुदा की लेखनी ने भाग्य की रेखा नहीं खींची 
सम्हाला होश जबसे साथ, देखा था अकेलापन 
किसी ने प्यार की बरसात से क्यारी नहीं सींची ||

उजाला है मगर दिल में अमावास ही अमावास है 
मुहोब्बत हो गयी है अब अकेली शाम , रातों से ||

कभी भगवान् से मैंने कोई चाहत नहीं मांगी 
मुझे फिर भी बिना मांगे दुखों की पोटली दे दी 
छुपाकर कब तलक रखूँ हंसी झूटी दिखाकर के 
अगर हिम्मत करूँ भी तो तमन्ना खोखली दे दी ||

डराया है मुझे अक्सर मेरी परछाइयों ने ही 
मुझे फिर से डराओ मत सलीके दार बातों से ||


तुम्हारे प्रेम को स्वीकार करने पर यकीनन तुम 
नयी शुरुआत चाहोगी मेरे अवशेष जीवन से 
जला अंगार हूँ मै क्या पता कब राख हो जाऊं 
उड़ा ले कब मुझे बहती हवा सुनसान आँगन से ||

चली जाओ कहीं कोई तरुण सी छावं खोजो तुम 
पुराने खंडहर को मत गिराओ नर्म हाथों से 
अगर दुखती रगों को तुम मेरी सहला नहीं सकती 
नए अघात मत करना मुहोब्बत की सलाखों से ||

मनोज

बुधवार, 21 अगस्त 2013

एक तरफ़ा प्रेम की संकरी गली में


एक तरफ़ा प्रेम की संकरी गली में 

मै स्वयं ही देवता हूँ साधना का 
और साधक भी स्वयं मै ही अकेला 
मन्त्र जपता हूँ निरंतर भावना का ||



उम्र की अल्ल्हड़ घनी अमराइयों में 
मन मयूरा बेसुधी में नाचता था 
पृष्ठ लिखे थे धरा पर जो समय ने 
जानकारी की तरह मै बांचता था ||

आज बिलकुल ही अलग है वो लिखावट 
सत्य से पर्दा गिरा जब वासना का ||

जो ह्रदय की कालिमा को न दिखाए 
स्वार्थ के पुतले उसे पहचानते हैं 
आवरण छल का चढ़ाये जी रहा जो 
व्यक्ति का संस्कार उसको मानते हैं ||

छोड़ देते हैं अकेला राह में जब 
भाव कोई व्यक्त कर दे कामना का ||

आज समझा हूँ समर्पण राधिका का 
क्यों हुयी थी बावरी मीरा दीवानी 
किस खुमारी में कबीरा नाचता था 
क्यूँ सुदामा ले गया तांदुल निशानी ||

प्रेम में चलता नहीं खोना कमाना 
प्रेम तो निश्वार्थ फल है प्रार्थना का ||.....मनोज

सोमवार, 19 अगस्त 2013

बेवफाई की अँधेरी कंदराओं से निकलकर




बेवफाई की अँधेरी कंदराओं से निकलकर

सोचता हूँ वेदना को प्रेम का उपचार दे दूँ

खो दिया था जो किसी का प्रेम पाने के लिए

उस समय को लेखनी से काव्य का श्रृंगार दे दूँ ||


चोट खाया ख्वाब अब भी रेंगता हैं पुतलियों में

टूटता विश्वास उड़ना चाहता है बदलियों में

आस का सूरज अभी भी लड़ रहा दुःख की निशा से

वीरता का भाव अब भी दौड़ता हैं पसलियों में ||


छोड़ आया था जिसे आधा अधूरा तोड़कर मै

कल्पना के आशियाँ को फिर नया आधार दे दूँ ||


आत्मा की तूलिका से भावना के चित्रपट पर 

रंग भरना चाहता हूँ आज मन के श्याम पट पर 

छोड़कर पीछे तुम्हारी याद की काली अमावास 

पूर्णिमा उपवास रखना चाहता हूँ रात कट कर 

साधना पूरी अभी भी हो गयी तो ये समझलो 

फिर तुम्हे शायद सवेरे का नया उपहार दे दूँ ||


राह में बिखरे हुए हैं द्वन्द के बाड़े पुराने 

वासना मारीचिकाएं भेजती सब कुछ लुटाने 

दोपहर की धूप जैसा जिंदगी का मध्य मुझसे 

चाहता है दो घडी आराम करने के बहाने ||

सोचता हूँ आँख लगने दूं तपी सी दोपहर में 

कुछ अधूरे स्वप्न को शायद पुनः साकार दे दूँ ||

 मनोज नौटियाल

शुक्रवार, 16 अगस्त 2013

आपका चेहरा



ग़मों की भीड़ में सब कुछ भुला दे आपका चेहरा 
तमन्ना को नयाँ सा हौसला दे आपका चेहरा ||

मुझे तन्हाइयों से बात करना भा रहा है क्यूँ 
कहीं मुझको मुझी से ना मिला दे आपका चेहरा ||

मुहोब्बत की किताबों ने डराया है हमें अक्सर 
नजर भर देखते ही सब भुला दे आपका चेहरा ||

हकीकत की हवाओं ने बुझाया आश का दीपक 
मगर विश्वाश का दीपक जला दे आपका चेहरा ||

घडी भर के लिए गर आप हो जाएँ खफा मुझसे 
मनाने का नयाँ सा सिलसिला दे आपका चेहरा ||

बताएं आपको क्या हाल क्या होता हमारा जब 
कभी मासूमियत से खिलखिला दे आपका चेहरा ||

नजर भर देखने की आप हमको जो सजा दोगे 
हमें मंजूर है जो भी सिला दे आपका चेहरा ||

ग़मों की भीड़ में सब कुछ भुला दे आपका चेहरा 
तमन्ना को नयाँ सा हौसला दे आपका चेहरा ||


मनोज नौटियाल