थक कर मृत्यु सभा में सबको रुकना होगा चलते चलते
चिता चपल की लपटों में तन राख बनेगा जलते जलते ||
दुनिया दारी की बाजारी अंकगणित का प्रश्न नहीं है
रिश्तों की घट जोड़ उधारी स्वार्थ रहित शुभ स्वप्न नहीं है
अपने मन के बीतराग को कौन समझ सकता है बेहतर
आत्म तत्व की सहज समाधि नहीं मिली माया में रहकर ||
बूढा वृक्ष बनेगा यह तन इक दिन आखिर झुक जाएगा
जीवन नभ में लाल आवरण फैलेगा दिन ढलते ढलते ||
राग द्वेष से उपजा छल बल दान दंभ का ही देता है
मन कल्मष करता है केवल मान भंग निश्चित होता है
प्रेम मन्त्र है मानव् सेवा आत्म तुष्टि का मूल यही है
परहित की हो तीव्र पिपाशा सत्य धर्म प्रतिकूल यही है ||
पञ्च तत्व का भौतिक दर्शन यह तन सत्य नहीं है बंधू
आत्म बोध के अभिलेखों को पढ़ते जा नित बढ़ते बढ़ते ||
रंगमंच में हर नाटक का केंद्रबिंदु ज्यूँ अभिनेता है
उस ईश्वर के अंशी हैं हम पात्र वही हमको देता है
दुःख सुख की दोलन शाला में दर्शक भी तू नर्तक भी तू
आंसू हो या हंसी लबों पर भोगों का प्रवर्तक भी तू ||
कितने ही सरताज हुए हैं , बड़े बड़े थे शाह शिकंदर
आखिर क्या पाया उन सब ने मानवता से लड़ते लड़ते ||......मनोज
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सोमवार, 27 अप्रैल 2020
मृत्यु सभा (कविता)
गुरुवार, 9 अप्रैल 2020
तुम्ही सुरक्षित रखना अब ये मेरी लिखी हुई कविताएं ।।
इससे पहले कोई आकर , चुरा न ले मेरी रचनाएं
तुम्ही सुरक्षित रखना अब ये मेरी लिखी हुई कविताएं ।।
लिखती रही युगों से तुम पर ,मेरी ये गुमनाम लेखनी
तुम्हे नायिका बना बनाई , अलंकार की अद्भुत वेणी
रस के सागर में , ना जाने , कितने रास रचाये मैने
और छंद के बन्ध बनाकर , कितने मंगल गाये मैंने।।
कहीं और कोई मेरे इन , गीतों पर मोहित हो जाएँ
तुम्ही सुरक्षित रखना अब ये मेरी लिखी हुई कविताएं ।।
अपनी रचनाओं की खातिर , सागर से गहराई मांगी
कुम्हलाऐं ना गीत कभी भी , बादल से परछाई मांगी
पूरनमासी की किरणों से अद्भुत रूप तुम्हारा मांगा
कामदेव की सभी कामनाओं का मौन सहारा मांगा।।
तुम से शुरू, तुम्ही पर, पूरी होती हैं सारी उपमाएं
तुम्ही सुरक्षित रखना अब ये मेरी लिखी हुई कविताएं ।।
मेरी कुछ रातों की नींदें , इन गीतों के संग जागी हैं
कुछ मासूम ख्वाहिशें मेरी , तन्हाई से डर भागी हैं
आंखों से आँसू बन सावन , बरसा है मेरे आंगन में
कई ख्वाब टूटे बिखरे हैं , सूनी आंखों के दर्पण में ।।
इस खालीपन की सीलन से कहीं गीत मुरझा ना जाएँ
तुम्ही सुरक्षित रखना अब ये मेरी लिखी हुई कविताएं।
फुरसत हो तो कभी बैठ कर ,पढ़ लेना मेरी कविताएं
मेरी निश्छल मन की पीड़ा , की साथी हैं ये रचनाएं
मेरी व्याकुलता की गिजबिज आवाजें हैं सिसकारी है
मैं माली उस बगिया का जो किसी और की फुलवारी है
अब तुम ही रखवाली करना, और तुम्हे ही ये महकाएं
तुम्ही सुरक्षित रखना अब ये मेरी लिखी हुई कविताएं ।।
🌺🌺🌺🌺 @सर्वधिकार सुरक्षित🌺🌺🌺🌺
🍁🍁🍁🍁मनोज नौटियाल🍁🍁🍁🍁