सोमवार, 6 जनवरी 2020

धूप का चश्मा

हमेशा धूप का चश्मा , मेरा छाता पुराना तू
तुझे पाना , तुझे जाना ,मेरी जाना हमेशा तू ।।

कमीना हूँ , नगीना हूँ , तुम्हारी जिंदगी भी हूँ
कभी योगी , कभी जोगी , मेरी सजना हमेशा तू।।

बहुत कुछ खो दिया मैंने , तुझे अपना बनाने में
सियासत तू , कयामत तू, मेरा सब कुछ कमाना तू।।

नफा नुकसान जब जोड़ा , इनायत तू बनी जग में
मेरी पहली अंगूठी तू , मेरा पहला नगीना तू।।

तुझे मजदूर बन कर मैं  , धियाड़ी ही समझता हूँ
मेरी किस्मत , मेरी हिम्मत , मेरा पहला पसीना तू।।

तुझे मुझसे शिकायत है , मुझे अय्यास कहती हो
तुझे ही सोचता हूँ ,बस तेरा हमदम कमीना हूँ ।।

जय हो ......
जय हो.......

मन प्यासा

मित्र ग़ाज़ियाबादी जी की लिखी दो पंक्तियों पर मेरी गुस्ताखी .....
क्यूँ  न  मन  मेरा  प्यासा हो ?
जन्मों की तुम अभिलाषा हो ।

समीकरण सी दुनियाँ दारी
धर्मों की तुम परिभाषा हो ।।

शून्य जगत है , और जगत में
तुम जीवन की , जिज्ञासा हो ।।

मैं हूँ  पांडव  , की निर्धनता
तुम , उस घर की , दुर्वासा हो।।

मित्र , गाजियाबाद,  हमारा
तुम उस घर की ,इक आशा हो।।

जय हो ,😍😍😍😍😍