सोमवार, 17 जून 2013

इबादत इश्क में जिसकी अभी तक भी अधूरी है






इबादत इश्क में जिसकी अभी तक भी अधूरी है 

सनम को ही खुदा समझो यही श्रद्धा सबूरी है ||



पलक पर आंसुओ की सेज दिल में याद के बंजर 

मिलन की चाह अच्छी है जुदाई भी जरूरी है ||


हकीकत आज भी है कल रहेगी और कल भी थी 

मिलन होगा भरोसा रख भले ही आज दूरी है ||


ज़माना क्या कहेगा इन रिवाजों में उलझना मत 

यहाँ बस प्यार से ही प्यार की अरदास पूरी है ||


चमक है इश्क के घर में खनक है यार के दर पर 

खुदा के नूर से रौशन यहाँ हर आँख नूरी है ||


किसी के नाम का कलमा पढ़ा जबसे मेरे दिल ने 

खुमारी छा गयी के क्या कहूँ तन मन सिन्दूरी है ||


मिले गम या मिले खुशियाँ किसे परवाह अब इसकी 

पिलाए जा पिए जा तू मुहोब्बत मय सुरूरी है ||


इबादत इश्क में जिसकी अभी तक भी अधूरी है 

सनम को ही खुदा समझो यही श्रद्धा सबूरी है ||


 मनोज

शनिवार, 15 जून 2013

जो लिखना है वो लिखने दे

जो लिखना है वो लिखने दे 
जो दिखता है वो दिखने दे ||

मुहोबत्त बेवफा तेरी 
मुझे अब स्वाद चखने दे ||

कहा तुमने मुझे पागल 
तुम्हे लगता तो बकने दे ||

तुम्हारी बेवफाई का 
मुझे सच आज रखने दे ||

तुम्हारी याद जालिम हैं 
मुझे ये जुर्म सहने दे ||

अकेला मै अकेली तुम 
रहना है तो रहने दे ||

तेरे आंसू मेरे आंसू 
बहते हैं तो बहने दे ||

ये कैसा प्यार था हम में 
मुझे कहना है कहने दे ||

जुदाई है जहर दिल का 
मुझे तू आज मरने दे ||

जिए तू जिंदगी अपनी 
दुआ मेरी तू लगने दे ||

तुम्हे गर जिंदगी दे दूं 
खुदाया आज मरने दे ||

गुनाह -ए-इश्क करना है 
मुझे इक बार करने दे ||...........मनोज

गुरुवार, 13 जून 2013

नयें इस साल से बेहतर पुराना साल अच्छा था






नयें इस साल से बेहतर पुराना साल अच्छा था 

बुरे इस हाल से अच्छा मेरा वो हाल अच्छा था ||

अता कर दी खुदा ने शौहरतें लेकिन तुम्हे खोया 
तुम्हे पाया अगर होता भले कंगाल अच्छा था ||

महल भी खंडहर से रात को लगते मुझे तुम बिन 
तुम्हारे प्यार के घर का फटा तिरपाल अच्छा था ||

धरम के नाम पर लाखों किताबें पढ़ चुका लेकिन 
वो वृन्दावन विहारी सांवरा गोपाल अच्छा था ||

जुड़ा है आज अंतर्जाल से इंसान दुनिया से 
मगर पीपल तले घर गाँव का चौपाल अच्छा था ||

शहर में खो गया हूँ रोटियों की खोज में हर दिन 
वो माँ का प्यार अपना पन मेरा गढ़वाल अच्छा था ||

नयें इस साल से बेहतर पुराना साल अच्छा था 
बुरे इस हाल से अच्छा मेरा वो हाल अच्छा था ||


मनोज

बुधवार, 5 जून 2013

पूर्ण कलश लेकर अर्पण का अर्ध्य तुम्हे प्रेषित कर डाला





पूर्ण कलश लेकर अर्पण का अर्ध्य तुम्हे प्रेषित कर डाला
प्रतिक्षण तन मन चाह रहा है प्रत्युत्तर की शुभ जयमाला ||

प्रेम साधना जाप निरंतर युगों युगों से तुम्हे पुकारे
मन्त्र तुम्हारा नाम बनाकर मेरा मन हर सांस उचारे
व्याकुलता के हवन कुंड में विरह अग्नि की उठती लपटें
क्रूर समय के भूत निशाचर विघ्न हेतु नित इत उत झपटें

जाने कब  से प्रतीक्षित मै ,फेर रहा  साँसों की माला
प्रतिक्षण तन मन चाह रहा है प्रत्युत्तर की शुभ जयमाला ||

स्वप्न जगत पर टंकी हुयी कुछ पिछले जन्मो की घटनाएँ
मानस पर चलचित्र अधूरे उकरें और फिर से खो जाएँ 
चित्र तुम्हारा मन के कोरे कागज पर है यंत्र उकेरा 
ध्यान लगाऊं जब भी गहरा साक्ष्य बना है घोर अँधेरा ||

अमृत की चाहत में पी है मैंने घट घट भर कर हाला ||
प्रतिक्षण तन मन चाह रहा है प्रत्युत्तर की शुभ जयमाला ||

साधन तुमको मान लिया है अनुष्ठान का धेय तुम्ही हो 
सुफल साधना ज्ञान तुम्ही हो अनुष्ठान  का गेय तुम्ही हो 
भंग न हो जाए यह पूजा मोह पाश की बरसातों में 
मेरी प्रतीक्षा का आसन डोला है अनगिन रातों में 

मन मनोज ने प्रणय क्षणों को कई बार कल्पित कर डाला 
प्रतिक्षण तन मन चाह रहा है प्रत्युत्तर की शुभ जयमाला || ...मनोज