बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

मै एक नवजात शिशु हूँ

मै एक नवजात शिशु हूँ 
मेरी कोई भाषा नहीं है 
केवल भाव हैं ..... हँसना और रोना 
मेरा संसार ये छोटा सा बिछौना
मातृत्व का बोध ही मेरा पहला ज्ञान है 
बस यही मेरी पहचान है 
कोई पुस्तक नहीं पढ़ी न वेद न कुरान 
और न ही जनता हूँ मै कोई संविधान 
आत्मा और शरीर का मिलन हूँ 
बिल्कुल खाली हूँ कोरे कागज सा 
निश्छल हूँ शीतल उषा किरण हूँ 
विराट बहुत है ये संसार फिर भी घुटन है 
जलते हुए लोगों के सिकुड़े हुए तन मन है 
मेरी नौ माह की तपस्या के सारे ज्ञान को 
मेरी सच्चाई और मेरी असली पहचान को 
तुम वक़्त  के साथ गुमनाम बना दोगे  
पहना कर मुझे झूठा मुखौटा छल कपट का 
अपनी तरह ही मुझे इन्सान बना दोगे ........मनोज 

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