बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

फकीरी और अमीरी

फकीरी और अमीरी में फगत बस भेद इतना सा 
.....फकीरी पा के खोना है अमीरी खो के पाना है //

कभी खुद को अकेले में अकेला देखते रहना 
जिसे मंजिल समझता है जगत ये आशियाना है //

हजारों रूप दे बैठा सनातन सत्य को पागल 
अवर्णित को बता कैसे किताबों में  छपाना है ?

तेरे हर धर्म ने अब तक हजारों क़त्ल कर डाले 
तुझे अब भी नहीं आया कहाँ मंदिर  बनाना है //

खुदा को भूल कर खुद को कहाँ तक दौड पायेगा 
....जिसे तू मौत कहता है वही उसका घराना है //

कभी तू वासना पूजे कभी तू कामना पूजे 
तेरा मंदिर में जाना भी कोई मनप्रीत पाना है //

बिना मांगे कभी होकर के आना द्वार पर उसके 
समझ लेना कि उसने दे दिया अपना खजाना है //

अमन के गीत हैं मन के तमस में गूँज है उनकी 
अनाहद नाद है सुन ले वही सच्चा तराना है //

फकीरी और अमीरी में फगत बस भेद इतना सा 
.....फकीरी पा के खोना है अमीरी खो के पाना है //.................. मनोज 

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