फकीरी और अमीरी में फगत बस भेद इतना सा
.....फकीरी पा के खोना है अमीरी खो के पाना है //
कभी खुद को अकेले में अकेला देखते रहना
जिसे मंजिल समझता है जगत ये आशियाना है //
हजारों रूप दे बैठा सनातन सत्य को पागल
अवर्णित को बता कैसे किताबों में छपाना है ?
तेरे हर धर्म ने अब तक हजारों क़त्ल कर डाले
तुझे अब भी नहीं आया कहाँ मंदिर बनाना है //
खुदा को भूल कर खुद को कहाँ तक दौड पायेगा
....जिसे तू मौत कहता है वही उसका घराना है //
कभी तू वासना पूजे कभी तू कामना पूजे
तेरा मंदिर में जाना भी कोई मनप्रीत पाना है //
बिना मांगे कभी होकर के आना द्वार पर उसके
समझ लेना कि उसने दे दिया अपना खजाना है //
अमन के गीत हैं मन के तमस में गूँज है उनकी
अनाहद नाद है सुन ले वही सच्चा तराना है //
फकीरी और अमीरी में फगत बस भेद इतना सा
.....फकीरी पा के खोना है अमीरी खो के पाना है //.................. मनोज
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