शुक्रवार, 3 जनवरी 2025

चंडी ध्वज स्तोत्रम।

चंडी ध्वज स्तोत्रम्   सही दिशा# ब्रह्मराक्षस
नित्य प्रति इसका पाठ करै और अपने जीवन मै परिवर्तन देखै #follower  #friends 
पहले जल हाथ मै लै और यह पढे 
ॐ अस्य श्री चंडी ध्वज स्तोत्र मन्त्रस्य मार कंडेय रिषि अनुष्टुप छंदः श्रां बीजं श्रीं शक्ति श्रूं कीलकं मम बान्छताथॅ सिद्यरथे जपे बिनियोगः 
ऊ श्रीं नमो जगत प्रतिष्ठायै दैब्यै भूत्यै नमो नमः 
परमानंद रूपिन्यै नित्यायै सततं नमः 
नमस्तेस्तु महा देबी पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं दे हि मे सदा ।
रक्ष मां शरन्ये देवि धन धान्य प्रदायनी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा ।
नमस्तेस्तु महाकाली पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा ।
नमस्तेस्तु महा लछमी  पर ब्रम्ह स्वरूपणी  
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा ।
नमो महा सरस्वती देवी पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
नमो ब्राम्ही नमस्तेस्तु  पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
नमो माहेश्वरी देवी पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
नमस्तेस्तु च कोमारी पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
नमस्ते बैष्णबी देबी पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
नमस्तेस्तु च बाराही पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
नारसिंही नमस्तेस्तु पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
नमो नमस्ते इंद्राणी पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
नमो नमस्ते चामुंडे पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
नमो नमस्ते नन्दायै पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
रक्तदंते नमस्तेस्तु पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
नमस्तेस्तु महा दुर्गे पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
शाकंभरी नमस्तेस्तु पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
शिव दूती नमस्तेस्तु पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
नमस्ते भ्रामरी देवि पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
नमो नवग्रह रूपे पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
नव कूट महादेवी पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
स्वणॅ पूरणे नमस्तेस्तु पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
श्री सुन्दरी नमस्तेस्तु पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
नमो भगवति देवि पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
दिब्य योगिनी नमस्तेस्तु पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
नमस्तेस्तु महा देबी पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
नमो नमस्ते सावित्री पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा  
जय लक्ष्मी नमस्तेस्तु  पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
मोक्ष लक्ष्मी  नमस्तेस्तु पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
रक्ष माम शरन्ये देवि पर ब्रम्ह स्वरूपणी 
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा 
चंडी ध्वज मिदं स्तोत्रम् सरब काम फल प्रदं 
राजते सरब जन्तुनां वशीकरण साधनं ।।

इस चंडी ध्वज स्तोत्र को पाठ करने से सभी कामनाये सफल हो जाती है अधिक कहने की जरूरत नही है यह स्तोत्र स्वयं बोल रहा है राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा  केवल माता के सामने एक दीपक जलायै  पाठ नित्य करै घर पर चंडी ध्वज लगायें  मै जादा नही कहूँ गा आप स्वयं करके देखै 41दिन लगातार नियम से करै इतने मै आपको समझ आ जायेगा परिवर्तन  सभी प्रकार से लेकिन नियम से रोज करना है  
कृपया 41 दिन बाद मुझसे जरूर बताये अभी तक मेरा अनुभव  था आपका भी तो पता लगे धन्यवाद 

जय माँ राज राजेश्वरी  ।।
राज्यं देही धनं देही साम्राज्यं देहि मे सदा

बुधवार, 1 जनवरी 2025

श्री मंगल चंडिका स्तोत्रम

श्रीमंगल चंडिका स्त्रोत के लाभ
इस स्तोत्र का पाठ आप मंगलवार दिन आरंभ करें साथ ही भगवा
श्रीमंगल चंडिका स्त्रोत के लाभ
इस स्तोत्र का पाठ आप मंगलवार दिन आरंभ करें साथ ही भगवान शिव का पंचाक्षरी का एक माला जप करने से अधिक लाभ मिलेगा अत्यंत चमत्कारिक है यह स्तोत्र अवश्य लाभ लें
श्री मंगल चंडिका स्तोत्रम् का वर्णन ब्रह्मवार्ता पुराण में देखने को मिल जायेगा ! श्री मंगल चंडिका स्तोत्रम् पूरी तरह संस्कृत भाषा में लिखा हुआ हैं ! श्री मंगल चंडिका स्तोत्रम् का जाप करने से उस व्यक्ति की सभी इच्छाये पूरी हो जाती हैं ! चंडीका देवी महात्म्य की सर्वोच्च देवी मानी जाती है दुर्गा सप्तशती में चंडीका देवी को चामुंडा या माँ दुर्गा कहा गया हैं ! चंडीका देवी महाकाली, महा लक्ष्मी और महा सरस्वती का एक संयोजन रूप हैं ! श्री मंगल चंडिका स्तोत्रम् का व्यक्ति नियमित रूप से जाप करता हैं उसे धन, व्यापार, गृह-कलेश आदि समस्या से परेशानी नही आती हैं ! जिस भी जातक का विवाह में परेशानी आ रही हो तो उसे श्री मंगल चंडिका स्तोत्रम् का नियमित जाप करने से शादी में आ रही परेशानी दूर हो जाती हैं ,
मंगल दोष के कुछ प्रभावी एवं लाभकारी उपाय..
मंगल दोष की वजह से विवाह में देरी हो तो ये उपाय जरूर करने चाहिए। माना जाता है कि इन उपायों को करने से विवाह में आ रही बाधाएं जल्द दूर होती हैं और शीघ्र विवाह होता है।
1 जिन जातकों की जन्म कुंडली के 1,4,7 और 12 वें भाव में मंगल होता है, उन्हें मांगलिक दोष होता है। इस दोष के कारण जातक को कई प्रकार की बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है जैसे उनके भूमि से संबंधित कार्यो में बाधा आती है। विवाह में विलंब होता है। ऋण से मुक्ति नहीं मिलती, वास्तुदोष उत्पन्न हो सकता है
2 अगर किसी युवती के विवाह में मंगल की वजह से बाधा आ रही है तो शुक्ल पक्ष के मंगलवार को भगवान राम-सीता व हनुमानजी के चित्र की स्थापना करें और दीपक जलाकर सुंदरकांड का पाठ करें।
3 बंदरों व कुत्तों को गुड व आटे से बनी मीठी रोटी खिलाएं
4 मंगल चन्द्रिका स्तोत्र का पाठ करना भी लाभ देता है
5 माँ मंगला गौरी की आराधना से भी मंगल दोष दूर होता है
6 कार्तिकेय जी की पूजा से भी मंगल दोष के दुशप्रभाव में लाभ मिलता है
7 मंगलवार को बताशे व गुड की रेवड़ियाँ बहते जल में प्रवाहित करें
8 आटे की लोई में गुड़ रखकर गाय को खिला दें
9 मंगली कन्यायें गौरी पूजन तथा श्रीमद्भागवत के 18 वें अध्याय के नवें श्लोक का जप अवश्य करें
10 मांगलिक वर अथवा कन्या को अपनी विवाह बाधा को दूर करने के लिए मंगल यंत्र की नियमित पूजा अर्चना करनी चाहिए।
11 मंगल दोष द्वारा यदि कन्या के विवाह में विलम्ब होता हो तो कन्या को शयनकाल में सर के नीचे हल्दी की गाठ रखकर सोना चाहिए और नियमित सोलह गुरूवार पीपल के वृक्ष में जल चढ़ाना चाहिए
12 मंगलवार के दिन व्रत रखकर हनुमान जी की पूजा करने एवं हनुमान चालीसा का पाठ करने से व हनुमान जी को सिन्दूर एवं चमेली का तेल अर्पित करने से मंगल दोष शांत होता है
13 महामृत्युजय मंत्र का जप हर प्रकार की बाधा का नाश करने वाला होता है, महामृत्युजय मंत्र का जप करा कर मंगल ग्रह की शांति करने से भी वैवाहिक व दांपत्य जीवन में मंगल का कुप्रभाव दूर होता है
14 यदि कन्या मांगलिक है तो मांगलिक दोष को प्रभावहीन करने के लिए विवाह से ठीक पूर्व कन्या का विवाह शास्त्रीय विधि द्वारा प्राण प्रतिष्ठित श्री विष्णु प्रतिमा से करे, तत्पश्चात विवाह करे
15 यदि वर मांगलिक हो तो विवाह से ठीक पूर्व वर का विवाह तुलसी के पौधे के साथ या जल भरे घट (घड़ा) अर्थात कुम्भ से करवाएं।
16 यदि मंगली दंपत्ति विवाहोपरांत लालवस्त्र धारण कर तांबे के पात्र में चावल भरकर एक रक्त पुष्प एवं एक रुपया पात्र पर रखकर पास के किसी भी हनुमान मन्दिर में रख आये तो मंगल के अधिपति देवता श्री हनुमान जी की कृपा से उनका वैवाहिक जीवन सदा सुखी बना रहता है
मांगलिक-दोष हेतु मंगल के इन 21 नाम नित्य पाठ करें
1. ऊँ मंगलाय नम:
2. ऊँ भूमि पुत्राय नम:
3. ऊँ ऋण हर्वे नम:
4. ऊँ धनदाय नम:
5. ऊँ सिद्ध मंगलाय नम:
6. ऊँ महाकाय नम:
7. ऊँ सर्वकर्म विरोधकाय नम:
8. ऊँ लोहिताय नम:
9. ऊँ लोहितगाय नम:
10. ऊँ सुहागानां कृपा कराय नम:
11. ऊँ धरात्मजाय नम:
12. ऊँ कुजाय नम:
13. ऊँ रक्ताय नम:
14. ऊँ भूमि पुत्राय नम:
15. ऊँ भूमिदाय नम:
16. ऊँ अंगारकाय नम:
17. ऊँ यमाय नम:
18. ऊँ सर्वरोग्य प्रहारिण नम:
19. ऊँ सृष्टिकर्त्रे नम:
20. ऊँ प्रहर्त्रे नम:
21. ऊँ सर्वकाम फलदाय नम:
अथश्री मंगलचंडिकास्तोत्रम् .
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सर्वपूज्ये देवी मङ्गलचण्डिके I
ऐं क्रूं फट् स्वाहेत्येवं चाप्येकविन्शाक्षरो मनुः II
पूज्यः कल्पतरुश्चैव भक्तानां सर्वकामदः I
दशलक्षजपेनैव मन्त्रसिद्धिर्भवेन्नृणाम् II
मन्त्रसिद्धिर्भवेद् यस्य स विष्णुः सर्वकामदः I
ध्यानं च श्रूयतां ब्रह्मन् वेदोक्तं सर्व सम्मतम् II
देवीं षोडशवर्षीयां शश्वत्सुस्थिरयौवनाम् I
सर्वरूपगुणाढ्यां च कोमलाङ्गीं मनोहराम् II
श्वेतचम्पकवर्णाभां चन्द्रकोटिसमप्रभाम् I
वन्हिशुद्धांशुकाधानां रत्नभूषणभूषिताम् II
बिभ्रतीं कबरीभारं मल्लिकामाल्यभूषितम् I
बिम्बोष्टिं सुदतीं शुद्धां शरत्पद्मनिभाननाम् II
ईषद्धास्यप्रसन्नास्यां सुनीलोल्पललोचनाम् I
जगद्धात्रीं च दात्रीं च सर्वेभ्यः सर्वसंपदाम् II
संसारसागरे घोरे पोतरुपां वरां भजे II
देव्याश्च ध्यानमित्येवं स्तवनं श्रूयतां मुने I
प्रयतः संकटग्रस्तो येन तुष्टाव शंकरः II
शंकर उवाच रक्ष रक्ष जगन्मातर्देवि मङ्गलचण्डिके I
हारिके विपदां राशेर्हर्षमङ्गलकारिके II
हर्षमङ्गलदक्षे च हर्षमङ्गलचण्डिके I
शुभे मङ्गलदक्षे च शुभमङ्गलचण्डिके II
मङ्गले मङ्गलार्हे च सर्व मङ्गलमङ्गले I
सतां मन्गलदे देवि सर्वेषां मन्गलालये II
पूज्या मङ्गलवारे च मङ्गलाभीष्टदैवते I
पूज्ये मङ्गलभूपस्य मनुवंशस्य संततम् II
मङ्गलाधिष्टातृदेवि मङ्गलानां च मङ्गले I
संसार मङ्गलाधारे मोक्षमङ्गलदायिनि II
सारे च मङ्गलाधारे पारे च सर्वकर्मणाम् I
प्रतिमङ्गलवारे च पूज्ये च मङ्गलप्रदे II
स्तोत्रेणानेन शम्भुश्च स्तुत्वा मङ्गलचण्डिकाम् I
प्रतिमङ्गलवारे च पूजां कृत्वा गतः शिवः II
देव्याश्च मङ्गलस्तोत्रं यः श्रुणोति समाहितः I
तन्मङ्गलं भवेच्छश्वन्न भवेत् तदमङ्गलम् II
II इति श्री ब्रह्मवैवर्ते मङ्गलचण्डिका स्तोत्रं संपूर्णम् II
श्री मङ्गलचण्डिका स्तोत्र (हिंदी अनुवाद)
' ॐ हृीं श्रीं क्लीं सर्वपूज्ये देवि मङ्गलचण्डिके ऐं क्रूं फट् स्वाहा ॥ '
इक्कीस अक्षरका यह मन्त्र सुपूजित होनेपर भक्तोंकी संपूर्ण कामना प्रदान करनेके लिये कल्पवृक्षस्वरुप है ।
ब्रह्मन् ! अब ध्यान सुनो । सर्वसम्मत ध्यान वेदप्रणित है ।
" सुस्थिर यौवना भगवती मङ्गलचण्डिका सदा सोलह
वर्षकी ही जान पडती हैं । ये सम्पूर्ण रुप-गुणसे सम्पन्न,
कोमलाङ्गी एवं मनोहारिणी हैं । श्र्वेत चम्पाके समान इनका गौरवर्ण तथा करोडों चन्द्रमाओंके तुल्य इनकी
मनोहर कान्ति हैं । वे अग्निशुद्ध दिव्य वस्त्र धारण किये
रत्नमय आभूषणोंसे विभूषित हैं । मल्लिका पुष्पोंसे समलंकृत केशपाश धारण करती हैं । बिम्बसदृश लाल ओठ, सुन्दर दन्त पक्तिं तथा शरत्कालके प्रफुल्ल कमलकी भाँति शोभायमान मुखवाली मङ्गलचण्डिकाके प्रसन्न अरविंद जैसे वदनपर मन्द मुस्कानकी छटा छा रही हैं । इनके दोनों नेत्र सुन्दर खिले
हुए नीलकमलके समान मनोहर जान पडते हैं । सबको
सम्पूर्ण सम्पदा प्रदान करनेवाली ये जगदम्बा घोर संसार
सागरसे उबारनेमें जहाजका काम करती हैं । मैं सदा इनका भजन करता हूँ । "
मुने ! यह तो भगवती मङ्गलचण्डिकाका ध्यान हुआ ।
ऐसे ही स्तवन भी है, सुनो !
महादेवजीने कहा
" जगन्माता भगवती मङ्गलचण्डिके ! आप सम्पूर्ण विपत्तियोंका विध्वंस करनेवाली हो एवं हर्ष तथा मङ्गल
प्रदान करनेको सदा प्रस्तुत रहती हो । मेरी रक्षा करो, रक्षा करो । खुले हाथ हर्ष और मङ्गल देनेवाली हर्ष मङ्गलचण्डिके ! आप शुभा, मङ्गलदक्षा, शुभमङ्गलचण्डिका, मङ्गला, मङ्गलार्हा तथा सर्वमङ्गलमङ्गला कहलाती हो ।
देवि ! साधुपुरुषोंको मङ्गल प्रदान करना तुम्हारा स्वाभाविक गुण हैं । तुम सबके लिये मङ्गलका आश्रय हो । देवि ! तुम मङ्गलग्रहकी इष्टदेवी हो । मङ्गलके दिन तुम्हारी पूजा होनी चाहिये । मनुवंशमें उत्पन्न राजा मङ्गलकी पूजनीया देवी यहो । मङ्गलाधिष्ठात्री देवी !
तुम मङ्गलोंके लिये भी मङ्गल हो । जगत्के समस्त
मङ्गल तुमपर आश्रित हैं । तुम सबको मोक्षमय मङ्गल प्रदान करती हो । मङ्गलको सुपूजित होनेपर मङ्गलमय
सुख प्रदान करनेवाली देवि ! तुम संसारकी सारभूता मङ्गलाधारा तथा समस्त कर्मोंसे परे हो । "
इस स्तोत्रसे स्तुति करके भगवान् शंकरने देवी मङ्गचण्डिकाकी उपासना की । वे प्रति मङ्गलवारको उनका पूजन करते चले जाते हैं । यों ये भगवती सर्वमङ्गला सर्वप्रथम भगवान् शंकरसे पूजित हुई ।
उनके दूसरे उपासक मङ्गल ग्रह हैं । तीसरी बार राजा
मङ्गलने तथा चौथी बार मङ्गलके दिन कुछ सुन्दरी स्त्रियोंने इन देवीकी पूजा की । पाँचवीं बार मङ्गलकी कामना रखनेवाले बहुसंख्यक मनुष्योंने मङ्गलचण्डिकाका पूजन किया । फिर तो विश्वेश शंकरसे सुपूजित ये देवी प्रत्येक विश्र्वमें सदा पूजित होने
लगीं । मुने ! इसके बाद देवता, मुनि, मनु और मानव सभी
सर्वत्र इन परमेश्र्वरीकी पूजा करने लगे ।
फलश्रुति :
जो पुरुष मनको एकाग्र करके भगवती मङ्गलचण्डिकाके इस स्तोत्रका श्रवण करता है, उसे सदा मङ्गल प्राप्त होता है । अमङ्गल उसके पास नहीं आ
सकता । उसके पुत्र और पौत्रोंमें वृद्धि होती है तथा उसे प्रतिदिन मङ्गलही दृष्टिगोचर होता है ।
यह अनुवाद गीताप्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित संक्षिप्त ब्रह्मवैवर्तपुराणमे किये गये हिंदी अनुवादपर आधारित है तथा उनके प्रति नम्रतापूर्वक कृतज्ञता प्रगतकरते हुए साधकों के लिये सादर किया गया है ।