मेरी पहली कविता जैसी....
बचपन का एहसास जवानी की दहलीजों पर आया जब
प्यार अनकहा यादों की मासूम सरहदों पर आया जब ll
अक्सर पहला प्यार अधूरा किस्सा होता है किस्मत का
और दूसरा प्यार जवानी की जिद भरने को आया जब।।
तब से लेकर मासूमियत की परिभाषा है तुम जैसी
मेरी पहली कविता जैसी....।।
मेरी पहली कविता जैसी चंचलता का सादापन हो
मेरे जीवन में तुम ही बस मेरा एक अधूरापन हो।।
घायल मन की पागल चिंता जब लिखती है कविता कोई
उस कविता में मेरे मन के कल्पवृक्ष का तुम चंदन हो।।
उस चन्दन की शीतलता में तुम ही हो शीतलता जैसी
मेरी पहली कविता जैसी....।।
चन्दन की परछाई में ही मैंने तो अब तक खुद को जाना
रफ कॉपी से बनी डायरी में बुन बैठा मैं ताना बाना।।
उन ताने बाने की कविता को जब भी सुनता है कोई
सब कहते हैँ, उस साँवरिया से है तेरा नेह पुराना।।
कैसे समझाऊं सबको मैं, वो तो थी बहती सरिता सी
मेरी पहली कविता जैसी....।।
बहती सरिता थी वो मिलने को अपने सागर से प्यासी
कैसे मिलती मुझसे जिसका जीवन बन बैठा बनवासी
कभी नहीं कह पाया उससे अपने मन की व्यथा कथा को
मेरी तृष्णा आजीवन अब सदा रहेगी प्यासी प्यासी।।
यूं ही जीवन की इच्छाएं,शब्दों में लिक्खी कविता सी।।
मेरी पहली कविता जैसी....।।
सर्वाधिकार सुरक्षित
मनोज नौटियाल
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