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प्रेम जब हो गया तुमको पहन ली शर्म की चादर ||
जहाँ पर प्यार होता है वहां इनकार होता है
वहीँ इकरार की खातिर तड़पते हैं कई रहबर ||
गुरूर-ए -इश्क में रहना रिवाज -ए -हुस्न की फितरत
अदाओं की पनाहों में मिटे आशिक कई बनकर ||
तुम्हे मालूम है जब भी हमारा दिल धड़कता है
मुझे मालूम होता है तुम्हारी याद है दिलबर ||
हमारे इश्क की कहानी सच हो गयी होती
ज़माना साथ जो देता हमारा रहनुमा बन कर ||
कभी जो आईना देखो हमें भी सोच लेना तुम
हमारी चाहतों का अक्स बनता है वहां अक्सर ||
जुदाई के कई किस्से सुने हैं प्यार के दुश्मन
जहाँ की शाजिशों में दब गए लाखों फ़ना होकर||
हमारी याद में तुम थे कलम ने बात जब की थी
तुम्हे कैसे बताएं हम लिखा है याद में जलकर ||...............मनोज
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