तुम हो आज भी
मेरा पहला और आखिरी एहसास
बचपन की पहली तीस जो आज भी है
लेकिन कोई दुःख नहीं कोई विरह नहीं
सबने खोया है प्रेम में मैंने पाया है
पाया है ये सारा वर्तमान
पाया है सम्पूर्ण ज्ञान
प्रेम कहो या पूजा कहो
भक्ति कहो या अजपा जाप ............
तुम हो आज भी ....
मेरी हर प्रार्थना में
मेरी हर साधना में
तुमको तो मालूम नहीं होगा मुझे पता है
लेकिन मेरी पूर्णता हो तुम
मेरे रक्त में उष्णता हो तुम
योवन का अनंत प्रथम सावन
कभी न टूटने वाला बंधन
तुम आज किसी के आँगन की तुलसी हो
लेकिन मेरे हर्ष में आज भी तुम बसी हो
तुम हो आज भी ...............
तुमको शायद मेरा नाम भी याद नहीं होगा
और न ही कोई छवि होगी ह्रदय में
समर्पित होगी तुम अपनी दुनिया में
यही मेरी धारणा थी यही मान्यता थी
एकतरफा होकर भी मेरी पूर्णता थी ......
आज भी हर्षित करते हैं वो चार बसंत काल
आज भी तुम हो और रहोगी अनंत .काल
तुम हो आज भी ............................................................. मनोज
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