बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

मोहोबत्त कम नहीं होती खुदा के इस घराने में


मोहोबत्त कम नहीं होती खुदा के इस घराने में

 हजारों ख्वाहिशें पल कर जवां है दिल दीवाने में //

फलक तक साथ चलने के पलक में ख्वाब रखे हैं
 झलक काफी है दरिया को समंदर तक बहाने में//

तमन्ना की जमीं पर ख्वाब पकने दो मेरे हमदम 
सुना है ख्वाब ही सच बन गए हैं अब जमाने में //

दिलों के हाल को अक्सर कोई फनकार जब गाये 
झलक उस यार की अक्सर नजर आई तराने में //

मुकम्मल रास्ते में छोड़ कर क्यूँ साथ जाते हो 
मेरी मंजिल ही काफी है नए घर को बसाने में //

कभी आओ मेरे घर में तुम्हारी याद रहती है 
उन्हें तुम साथ ले जाना मै जी लूँगा वीराने में //

तुम्हारा नाम जब मै लूं जमाना कह्कहें मारे 
उन्हें क्या चैन मिलता है मुझे यूँ कर सताने में //

मुझे मालूम है तुम भी कभी तो लौट आओगे 
कभी तुम भी दिखोगे चश्मे नम मुझको मनाने में  //..........मनोज 

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