तन्हाई की शाम सजा कर बैठे हैं
घर को तेरी याद बना कर बैठे हैं //
तुमको ढूंढ रहा हूँ इन दीवारों में
दीवारों से बात बना कर बैठे हैं //
जाम निगाहों से पीते थे हम तेरी
अश्को का ही जाम बना कर बैठे हैं //
जलती थे दुनिया वाले हम दोनों से
दुनिया से पहचान मिटाकर बैठे हैं //
नाज हमें था अपनी प्रेम कहानी पर
आज कहानी से घबराकर बैठे हैं //
चाहत की मंडी के भी भाव अजब हैं
तनहाई के दाम लगा कर बैठे हैं //
कभी तुम्ही ने छुड़वाया था मयखाना
मयखाने में नाम लिखा कर बैठे हैं //
रो देते थे तुम मेरी इक उफ्फ पर
तुम आजाओ हर घाव छुपा कर बैठे हैं //
तुम्हे जिंदगी समझ रहे थे अपनी हम
आज जिंदगी दावं लगा कर बैठे हैं //
अब मनोज को समझेगा कोई कैसे
जिसको समझा उसे भुलाकर बैठे हैं //........ मनोज
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