बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

तन्हाई की शाम सजा कर बैठे हैं

तन्हाई की शाम सजा कर बैठे हैं 
घर को तेरी याद बना कर बैठे हैं //

तुमको ढूंढ रहा हूँ इन दीवारों में 
दीवारों से बात बना कर बैठे हैं //

जाम निगाहों से पीते थे हम तेरी
अश्को का ही जाम बना कर बैठे हैं //

जलती थे दुनिया वाले हम दोनों से
दुनिया से पहचान मिटाकर बैठे हैं //

नाज हमें था अपनी प्रेम कहानी पर
आज कहानी से घबराकर बैठे हैं //

चाहत की मंडी के भी भाव अजब हैं
तनहाई के दाम लगा कर बैठे हैं //

कभी तुम्ही ने छुड़वाया था मयखाना
मयखाने में नाम लिखा कर बैठे हैं //

रो देते थे तुम मेरी इक उफ्फ पर
तुम आजाओ हर घाव छुपा कर बैठे हैं //

तुम्हे जिंदगी समझ रहे थे अपनी हम
आज जिंदगी दावं लगा कर बैठे हैं //

अब मनोज को समझेगा कोई कैसे
 जिसको समझा उसे भुलाकर बैठे हैं //........ मनोज

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