मंगलवार, 12 फ़रवरी 2013

अर्थ रह गए गलियारों में शब्द बिक रहे बाजारों में

अर्थ रह गए गलियारों में शब्द बिक रहे बाजारों में
रचनाओं के सृजन कर्ता भटक रहे हैं अंधियारों में ।।

केवट भी तो तारक ही था जिसने तारा तारन हारा
कलयुग में ये दोनों अटके विषयों के मझधारों में ।।

कृष्ण नीति की पुस्तक गीता सच्चाई को तरसे देखो
हर धर्म धार दे रहा बेहिचक आतंकी के औजारों  में ।।

मंदिर मस्जिद घूम रहा है धर्म नहीं है जिस पंछी का
धर्म ज्ञान को रखने वाला झुलस रहा है अंगारों में ।।

धर्मों के बोझे हैं भारी थक कर चूर हो गया इन्सां
शांति युद्ध की स्वरलहरी अब सुनते हैं परिवारों में ।।

रावण के पुतले को मिलकर आग लगाने वालों सुन लो
पंडित सच्चा लड़ा विष्णु से राक्षस एक हजारों में ।।

सीता को सम्मान सहित था रखा राज्य में ये भी पढ़ लो
बारम्बार प्रणाम राम को छोड़ा जिसने गलियारों में ।।

कुछ अपने संस्कारों के भी आओ थोडा दर्शन कर लो
नोची अबला किसी गिद्ध ने सिद्ध बने जो अखबारों में ।।......मनोज

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