सोमवार, 4 मार्च 2013

वो बात पूछती है अक्सर सहेलियों में



वो बात पूछती है अक्सर सहेलियों में 
क्या प्यार की लकीरें सच हैं हथेलियों में ||


आया जवाब ऐसा इजहार -ए- मुहोब्बत
ना में जवाब ढूंढो हाँ का पहेलियों में ||

उसकी हसीन सूरत , कैसे बयाँ करूँ मै
हसीन चाँद लाखों जैसे जलें दियों में ||

गुस्ताख ये नजर भी हर सू उसे निहारे
फूलों की शोखियों में रंगीन तितलियों में ||

नाराजगी तुम्हारी मासूमियत भरी हैं
जैसे छुपी मुहोब्बत हो माँ की गालियों में ||

इनकार से डरूं क्या जब प्यार हो गया है
कब से खड़ा यहाँ मै बैठा सवालियों में ||

हर दर्द हो फ़ना जब तेरे करीब आऊँ
रौशन रहे अमावस जैसे दिवालियों में ||

नादान दिल हमारा , सुनता नहीं हमारी
पंछी उड़े अकेला , अन्जान डालियों में ||

हर गीत या गजल की बस एक इल्तजा है
सजती रहे जुबां पर , हो प्यार तालियों में ||......मनोज

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल,आभार.कमेंट्स वेरिफिकेशन से परेशानी तो होती ही है.

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  2. आया जवाब ऐसा इजहार -ए- मुहोब्बत
    ना में जवाब ढूंढो हाँ का पहेलियों में ...
    क्या बात है ... बहुत खूब शेर कहा है ..

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