मजदूर दिवस पर बाल मजदूरी पर कुछ एहसास
जहां तेरे हाथों में सजनी थी बचपन में नील सिह्याई
कानों में अ आ इ ई के शब्दों का मृदु स्वर होना था
पत्थर और हथोडी की थापों में गुम हो गया बालपन
चौराहे के पास बना विद्यालय जिसका घर होना था ||
माँ की लोरी क्या होती है उसको तो गाली मिलती है
जूठे बर्तन धोकर जूठे खाने की थाली मिलती है
खुला आसमां नंगी धरती शयन कक्ष है सूखा तन है
कीट पतंगे मच्छर जलचर सबकी रखवाली मिलती है ||
कूड़े के ऊंचे ढेरों को बीन बीन कर थक जाए जब
कड़ी दोपहर में सड़कों पर जलते जलते तप जाए जब
तब उसकी आँखों में झांको तुमको सच दिखलाई देगा
दो बासी रोटी के टुकड़े चौराहे पर रख जाए जब ||
फ़िक्र करे क्या कोई उसकी वो तो वोट नहीं दे सकता
बालिग़ होकर क्या कर लेगा तुमको चोट नहीं दे सकता
विश्व बैंक से भीख मांगने का सच्चा साधन है जो वो
बात अलग है खुद खाने रहने को नोट नहीं दे सकता ||
संस्कारों की बात सीखने मंदिर मस्जिद जाने वालों
धर्म ग्रथ के शिव को भर भर कच्चा दूध पिलाने वालों
इन मासूमों की आँखों में खाख दिखेगा तुमको ईश्वर
राजनीति के कोठे पर भड़ुओं को वोट दिलाने वालों ||
Manoj Nautiyal
-बहुत अच्छा भाव लिए रचना,श्रमिक दिवस की शुभ कामनाएं ,
जवाब देंहटाएंडैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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