नयें इस साल से बेहतर पुराना साल अच्छा था
बुरे इस हाल से अच्छा मेरा वो हाल अच्छा था ||
अता कर दी खुदा ने शौहरतें लेकिन तुम्हे खोया
तुम्हे पाया अगर होता भले कंगाल अच्छा था ||
महल भी खंडहर से रात को लगते मुझे तुम बिन
तुम्हारे प्यार के घर का फटा तिरपाल अच्छा था ||
धरम के नाम पर लाखों किताबें पढ़ चुका लेकिन
वो वृन्दावन विहारी सांवरा गोपाल अच्छा था ||
जुड़ा है आज अंतर्जाल से इंसान दुनिया से
मगर पीपल तले घर गाँव का चौपाल अच्छा था ||
शहर में खो गया हूँ रोटियों की खोज में हर दिन
वो माँ का प्यार अपना पन मेरा गढ़वाल अच्छा था ||
नयें इस साल से बेहतर पुराना साल अच्छा था
बुरे इस हाल से अच्छा मेरा वो हाल अच्छा था ||
मनोज
आपकी यह रचना कल शनिवार (15 -06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
जवाब देंहटाएंशहर में खो गया हूँ रोटियों की खोज में हर दिन
जवाब देंहटाएंवो माँ का प्यार अपना पन मेरा गढ़वाल अच्छा था |
-अपनी धरती बार-बार ऐसे ही पुकारती है !
बेहद सुंदर प्रस्तुती .....एक अपनापन लिए
जवाब देंहटाएंअरुण भाई बहुत धन्यवाद आपका | प्रतिभा जी और मञ्जूषा जी .... आप दोनों का भी हार्दिक आभार |
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