इबादत इश्क में जिसकी अभी तक भी अधूरी है
सनम को ही खुदा समझो यही श्रद्धा सबूरी है ||
पलक पर आंसुओ की सेज दिल में याद के बंजर
मिलन की चाह अच्छी है जुदाई भी जरूरी है ||
हकीकत आज भी है कल रहेगी और कल भी थी
मिलन होगा भरोसा रख भले ही आज दूरी है ||
ज़माना क्या कहेगा इन रिवाजों में उलझना मत
यहाँ बस प्यार से ही प्यार की अरदास पूरी है ||
चमक है इश्क के घर में खनक है यार के दर पर
खुदा के नूर से रौशन यहाँ हर आँख नूरी है ||
किसी के नाम का कलमा पढ़ा जबसे मेरे दिल ने
खुमारी छा गयी के क्या कहूँ तन मन सिन्दूरी है ||
मिले गम या मिले खुशियाँ किसे परवाह अब इसकी
पिलाए जा पिए जा तू मुहोब्बत मय सुरूरी है ||
इबादत इश्क में जिसकी अभी तक भी अधूरी है
सनम को ही खुदा समझो यही श्रद्धा सबूरी है ||
मनोज
वाह मनोज भाई छा गए आनंद आ गया भाई जी वाह क्या कहने,
जवाब देंहटाएंआपकी यह रचना कल मंगलवार (18-06-2013) को ब्लॉग प्रसारण के "विशेष रचना कोना" पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
पलक पर आंसुओं की सेज दिल में याद के बंजर ....क्या बात है .....!!
जवाब देंहटाएंdhanywaad harkeerat ji
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