यही उपकार काफी है कि अब उपकार मत करना
हमारे प्यार के बदले हमें तुम प्यार मत करना ||
तुम्हारे अक्स को अब आंसुओं से धो दिया मैंने
पलट कर फिर निगाहों से निगाहें चार मत करना ||
गुरूर -ए-हुश्न में तुमने सुबह से ख्वाब तोड़े थे
बिछड़ती शाम से अब तुम उन्हें गुलजार मत करना ||
सुलगती दोपहर में छाँव बनकर याद गर आये
झरोखे बंद कर देना कभी दीदार मत करना ||
तुम्हारी बेवफाई के चुभे खंजर कई दिल में
हरे हैं जख्म अब तुम फिर पलट कर वार मत करना ||
मिलें जो हम कभी मरकर मुहोब्बत की अदालत में
मुझे फिर प्यार करने की सजा स्वीकार मत करना ||
यही उपकार काफी है कि अब उपकार मत करना
हमारे प्यार के बदले हमें तुम प्यार मत करना ||
मनोज
बहुत सुन्दर ग़ज़ल....
जवाब देंहटाएंहर शेर दिल को छूता हुआ..
अनु
बहुत बहुत आभार आपका |
हटाएंधन्यवाद सर
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