सोमवार, 19 अगस्त 2013

बेवफाई की अँधेरी कंदराओं से निकलकर




बेवफाई की अँधेरी कंदराओं से निकलकर

सोचता हूँ वेदना को प्रेम का उपचार दे दूँ

खो दिया था जो किसी का प्रेम पाने के लिए

उस समय को लेखनी से काव्य का श्रृंगार दे दूँ ||


चोट खाया ख्वाब अब भी रेंगता हैं पुतलियों में

टूटता विश्वास उड़ना चाहता है बदलियों में

आस का सूरज अभी भी लड़ रहा दुःख की निशा से

वीरता का भाव अब भी दौड़ता हैं पसलियों में ||


छोड़ आया था जिसे आधा अधूरा तोड़कर मै

कल्पना के आशियाँ को फिर नया आधार दे दूँ ||


आत्मा की तूलिका से भावना के चित्रपट पर 

रंग भरना चाहता हूँ आज मन के श्याम पट पर 

छोड़कर पीछे तुम्हारी याद की काली अमावास 

पूर्णिमा उपवास रखना चाहता हूँ रात कट कर 

साधना पूरी अभी भी हो गयी तो ये समझलो 

फिर तुम्हे शायद सवेरे का नया उपहार दे दूँ ||


राह में बिखरे हुए हैं द्वन्द के बाड़े पुराने 

वासना मारीचिकाएं भेजती सब कुछ लुटाने 

दोपहर की धूप जैसा जिंदगी का मध्य मुझसे 

चाहता है दो घडी आराम करने के बहाने ||

सोचता हूँ आँख लगने दूं तपी सी दोपहर में 

कुछ अधूरे स्वप्न को शायद पुनः साकार दे दूँ ||

 मनोज नौटियाल

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