एक तरफ़ा प्रेम की संकरी गली में
मै स्वयं ही देवता हूँ साधना का
और साधक भी स्वयं मै ही अकेला
मन्त्र जपता हूँ निरंतर भावना का ||
उम्र की अल्ल्हड़ घनी अमराइयों में
मन मयूरा बेसुधी में नाचता था
पृष्ठ लिखे थे धरा पर जो समय ने
जानकारी की तरह मै बांचता था ||
आज बिलकुल ही अलग है वो लिखावट
सत्य से पर्दा गिरा जब वासना का ||
जो ह्रदय की कालिमा को न दिखाए
स्वार्थ के पुतले उसे पहचानते हैं
आवरण छल का चढ़ाये जी रहा जो
व्यक्ति का संस्कार उसको मानते हैं ||
छोड़ देते हैं अकेला राह में जब
भाव कोई व्यक्त कर दे कामना का ||
आज समझा हूँ समर्पण राधिका का
क्यों हुयी थी बावरी मीरा दीवानी
किस खुमारी में कबीरा नाचता था
क्यूँ सुदामा ले गया तांदुल निशानी ||
प्रेम में चलता नहीं खोना कमाना
प्रेम तो निश्वार्थ फल है प्रार्थना का ||.....मनोज
बहुत ही सुंदर भावुक.
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