एक नयाँ ताज़ातरीन गीत
वक्त के चाक की हम धुरी बन गए ,
थी थकावट मगर बस कदम भर चले
टकटकी बाँध कर देखते रह गए
ख्वाब सारे बगावत सनम कर चले ।।
वक्त के चाक की ........................
अधबुनी ख्वाहिशेँ , जाल बनती गई
और नजदीकियां ,ढाल बनती गई
प्रेत बन कर खड़े ये ,समय के दिए
मंजिलों की डगर में ,भरम कर चले ।।
वक्त के चाक की ........................
हुश्न के मखमली नर्म ,कालीन पर
इश्क के फूल हमने रखे ,बीन कर
वेदना की लगी आग में ,रात भर
आज खुद ही सनम हम ,हवन कर चले ।।
वक्त के चाक की ....................
तुम लखन बनके कर्तव्य पालन करो
राम को तुम समर्पित ये जीवन करो
उर्मिला बन अवध के वचन के लिए
प्रेम वन में मेरा छाँव बन कर चले ।।
वक्त के चाक की हम धुरी बन गए
थी थकावट मगर बस कदम भर चले
टकटकी बाँध कर देखते रह गए
स्वप्न सारे बगावत सनम कर चले ।।
.......... मनोज नौटियालH
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