सोमवार, 7 जून 2021

सोचता हूँ

सोचता हूँ देखता हूँ , समझ भी काफी मिली है
वर्ष बीते तो बता दूं , ये जवानी भी ढली है।।
एक अरसे से मिली थी जो कमाई इश्क की 
आज भी उस इश्क की , दिल में अदाएं मनचली हैं ।।
एक डोली में शिवालय आ गया था पास मेरे 
आज भी कैलाश वाशी एक मेरी ही कली है।।
क्या बताऊँ एक ख्वाहिश थी हमेशा ख्वाब सी
खोज मेरी आज मेरे पास मेरी अनकही है।।
कौन समझेगा मुझे क्या किसी को दूं सफाई
मैं रहूं या ना रहूं ये ख्वाब ही तो जिंदगी है।।
एक लम्हा भी कभी गर जिंदगी का मैं टटोलूँ 
हर खुशी के साथ गम भी लाजमी से आखरी है।।
कुछ समझना चाहते होंगे कहानी जिंदगी की
जिंदगी मिझको समझने के लिए ही अनकही है।।
मैं हमेशा सोचता हूँ क्या गलत है पास मेरे 
देखता हूँ तो पता ये जिन्दंगी ही तो सही है।।
फर्क अपने आप में बस आज ये पाया  कसमसे
मैं रहूं तो कल वही है ना रहूं तो कुछ नहीं है।। 
जन्मदिन की भेंट मुझको दे सको तो एक देना 
क्या तुम्हारे जन्म दिन में उम्र कम होती नहीं है?

मनोज

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