...कभी तो रात गुजरेगी उजाला फिर से छायेगा
कभी तो सच यहाँ पर फिर पुराना घर सजायेगा ||
बहुत जालिम निगाहों ने जला डाले कई सपने
कोई तो ख्वाब बच करके नया मंजर दिखायेगा ||
....पडोसी के घरों में क्रांति की क्यूँ बात करते हो
भगत फिर कौन जाने किस के घर में लौट आएगा ||
सभी धर्मों को लड़ते देख कर अफसोच होता है
न जाने किस शहर में फिर कोई रसखान गायेगा ||
सभी अर्जुन पड़े हैं मोह के वश में जमाने भर
न जाने कृष्ण फिर कब गीत गीता का सुनाएगा ||
हजारों लोग मरते हैं कभी मंदिर कभी मस्जिद
........लहू के रंग को कोई कभी तो देख पायेगा ||
पुरातन की बची जड़ भी किसी ने खोद डाली हैं
कोई माली कभी क्या फिर इसे गहरे दबाएगा ||
दबे पाओं चली है मौत सबके घर मिटाने को
जरा फिर गौर से सुन ले नहीं फिर सुन न पायेगा || ....................manoj
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें