समय भी चलता रहा जीवन दिया जलता रहा
अनुभूतियों के भाव में नवल पथ चलता रहा
आशा निराशा आचमन सुख दुःख वरण मन या अमन
प्रतिदिन दिवाकर ओज संध्या तिमिर से मिलता रहा
........अनुबंध के प्रबंध में निस्वार्थता सम्बन्ध की
......छल कपट के इस गावं में प्रेमजल बहता रहा
भाव के सागर तले कुछ सीप अंतर ज्ञान के
माया पिपासा मोह से खुद को स्वयं छलता रहा
गरल को अमृत समझ कर नीलकंठ बना नहीं
मृत्युंजय अजय का सूत्र है ये मन्त्र नित जपता रहा
वृतांत क्या इस वृत्त का जीवन गणित सीखा नहीं
.....बहु -ग्रन्थ बहुतेरे पढ़े बस सत्य से डरता रहा
कर्म और अकर्म की गीता अंकी हर पृष्ठ पर
मनन से भयभीत था आनंद से पढता रहा ...manoj
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