बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

कृष्ण तृष्णा

कृष्ण तृष्णा जीव की  चिर प्रीत संगम है
वो नित  चराचर में बसा मन  व्यर्थ का भ्रम है

अश्रु से अभिशेख कर कर होम विषयों  का
वासना के पार ही  वो नित  दिवा सम  है 

भव बन्धनों में रोप दे ज्ञान के अरविन्द को 
ज्ञान के बिन दिवा भी घनघोर सा तम है 

मुक्ति पथ  मोक्ष में आसक्त है अनवरत 
मरण जीवन प्रायश्चित का छुद्र सा  क्रम है 

मृग मारीचिका सम  छल कपट के बहु पाश में 
जगत और जगदीश में अंतर बहुत कम है ............मनोज 

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