पुराने अखबार की तरह हो गई है जिंदगी
रद्दी की टोकरी में पड़ा हुआ कोने में कहीं
पुराने अखबार की तरह हो गई है जिंदगी
ख़बर बीते कल की कोई पढता ही नहीं
सिकुड गया सीलन से हर पेज पर है नमी
कुछ रंगीन इश्तेहार से सपने हैं चमकते हुए
उन सपनों के घर का आज नमो निशान नहीं
सोचता हूँ बेच डालूं किसी कबाड़ के भाव में
बरसों से किसी कबाड़ी ने आवाज लगाई नहीं
जला के अलाव की तरह सेक डालूं मन करता है
मगर आज भी हर पेज पर दिखता है वो चेहरा हसीं ......................मनोज
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