बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

पुराने अखबार की तरह हो गई है जिंदगी


रद्दी की  टोकरी में पड़ा हुआ कोने में कहीं
पुराने अखबार की  तरह हो गई है जिंदगी

ख़बर  बीते कल की कोई पढता ही नहीं
सिकुड गया सीलन से हर पेज पर है नमी

कुछ रंगीन इश्तेहार से सपने हैं चमकते हुए
उन सपनों के घर का आज नमो निशान नहीं

 सोचता हूँ बेच डालूं किसी कबाड़ के भाव में
बरसों से किसी कबाड़ी ने आवाज लगाई नहीं

जला के अलाव की  तरह सेक डालूं मन करता है
मगर आज भी हर पेज पर दिखता है वो चेहरा हसीं ......................मनोज  

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