बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

वो पागल लड़की

जब सूरज के उगने से कलियाँ मंद मंद मुस्काती हैं
जब पवन मंद चलती है खेतों में हरियाली गाती है
जब कोयल की मीठी बोली तन मन को हर्षाती है
तब मुझको वो पागल लड़की जाने क्यूँ याद आ जाती है ?

जब नदिया का पानी कल- कल छल- छल बहता है
जब कोई पीर फ़कीर मलंगा अपनी धुन में रहता है
जब सावन की रिम -झिम बारिश कुछ पल को रुक जाती है
तब मुझको वो पागल लड़की जाने क्यूँ याद आ जाती है ?

जब पूनम का चाँद गगन में इठलाता है इतराता है
जब कोई तारा टूट गगन से धीरे धीरे खो जाता है
जब मै कुछ मांगू उस तारे से सूरत उसकी आ जाती है
तब मुझको वो पागल लड़की जाने क्यूँ याद आ जाती है ?



जब तन्हाई में कलम उठा कर लिखता हूँ कविता कोई
जब उठ जाती है मन के हर कोने में चाहत सोयी
जब लिखते लिखते कोई रचना झलक तेरी दिखलाती है
तब मुझको वो पागल लड़की जाने क्यूँ याद आ जाती है ?

जब मुझको देख खड़ी बेसुध वो धीरे से मुस्काती थी
चुपके चुपके नजरे भर- भर प्रेम सुधा बरसाती थी
प्रेम निवेदन सुन मेरा जब सपने में शरमा जाती है
 तब मुझको वो पागल लड़की जाने क्यूँ याद आ जाती है ?

जब विरह वेदना में जलकर मै मयखाने में जाता हूँ
यारों की महफ़िल में भी मै खुद को तनहा पाता हूँ
जब घर आते ही दीवारों में उसकी यादें सज जाती हैं
तब मुझको वो पागल लड़की जाने क्यूँ याद आ जाती है ?..................... मनोज

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें