कभी रिश्तों में हंगामा कभी सुनसान वीराना
वही क्यूँ दूर हो बैठा जिसे सब कुछ यहाँ माना ||
हजारों कह्कहें, सुनकर हजारों गीत लिख बैठे
अकेला हूँ , सुनाऊँ अब किसे ग़मगीन अफ़साना ||
मुझे अक्सर शिकायत थी खुदा सुनता नहीं मेरी
कि अब खुद से शिकायत है रजा उसकी नहीं जाना ||
दावा देकर दुआओं की , जहर सी बात करते हो
दुआ रख लो मेरी तुम ये जहर मुझको पिला जाना ||
कभी चलता शहर रुककर मुझे ये बात कहता है
...चलो फिर साथ चलते हैं , यहाँ मुड कर नहीं आना ||
जुआ है जिंदगी हर दिन , कभी तेरा कभी मेरा
कभी मर मर के जीना है कभी जी कर के मर जाना ||
मुझे भी फिर सजाने हैं वही सपने नए घर में
कहाँ वो घर बनाऊं मैं जरा मुझको भी समझाना ||
खयालों में बसे हो तुम , तुम्हारी याद इस दिल में
तुम्हे जब भी यकीं हो दर खुला है लौट आ जाना ||.........मनोज
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