बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

मै एक मजदूर हूँ

मै एक मजदूर हूँ 
फिर भी मजबूर हूँ 
दो निवालों के लिए 
और नौनिहालों के लिए 

दिन रात मेहनत कि खता हूँ 
कभी रीते पेट भी सो जाता हूँ 
गढे हैं मैंने अनगिनत कीर्तिमान 
बनाये हैं कई पत्थर भगवान 

सभ्यता के सृजन में बुनियाद मै हूँ 
तुम्हारे आशियाने की पहचान मै हूँ 
रंगमहल से लेकर ताजमहल में हूँ मै 
धर्म के मंदिरों की हर मंजिल में हूँ मै 

पर मै किसी को याद नहीं , आता हूँ 
और ना ही किसी का  प्रोत्साहन पता हूँ 
तुमने तो मेरे हाथ तक कटवा दिए थे 
मेरे कई पूर्वज तुमने दीवार में चिनवा दिए थे 
क्यूंकि तुम्हे झूटी वाहां वाही बटोरने का शौक था 
मै अमर न हो जाऊं तुम्हे यही खौफ था 

लेकिन मै आज भी हूँ 
और रहूँगा अमर हमेशा अपनी कृतियों में 
अवशेष बने हुए खंडहरों की स्मृतियों में 

मेरे ही बनाये मंदिर में गर मै खड़ा होकर देखूं 
मुझे मालूम है , तुम्हारी भक्ति मुझे तिरस्कार देगी 
तुम झुकते हो उस पत्थर  के आगे जिसे मैंने तराशा 
मेरी हर चोट से तुम भक्त हो किन्तु मुझे सिर्फ धिक्कार दोगे 
तुम्हारी झूटी भक्ति से कही ऊपर मेरी कल्पना है 
क्यूंकि मेरी कल्पना को ही तुम भगवान कहते हो 
मै मजदूर हूँ जिसने तेरे भगवान को बनाया है
फिर मै कौन हूँ जिसने तेरे भगवन को बनाया है ???????????????, ......... मनोज 

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