मै एक मजदूर हूँ
फिर भी मजबूर हूँ
दो निवालों के लिए
और नौनिहालों के लिए
दिन रात मेहनत कि खता हूँ
कभी रीते पेट भी सो जाता हूँ
गढे हैं मैंने अनगिनत कीर्तिमान
बनाये हैं कई पत्थर भगवान
सभ्यता के सृजन में बुनियाद मै हूँ
तुम्हारे आशियाने की पहचान मै हूँ
रंगमहल से लेकर ताजमहल में हूँ मै
धर्म के मंदिरों की हर मंजिल में हूँ मै
पर मै किसी को याद नहीं , आता हूँ
और ना ही किसी का प्रोत्साहन पता हूँ
तुमने तो मेरे हाथ तक कटवा दिए थे
मेरे कई पूर्वज तुमने दीवार में चिनवा दिए थे
क्यूंकि तुम्हे झूटी वाहां वाही बटोरने का शौक था
मै अमर न हो जाऊं तुम्हे यही खौफ था
लेकिन मै आज भी हूँ
और रहूँगा अमर हमेशा अपनी कृतियों में
अवशेष बने हुए खंडहरों की स्मृतियों में
मेरे ही बनाये मंदिर में गर मै खड़ा होकर देखूं
मुझे मालूम है , तुम्हारी भक्ति मुझे तिरस्कार देगी
तुम झुकते हो उस पत्थर के आगे जिसे मैंने तराशा
मेरी हर चोट से तुम भक्त हो किन्तु मुझे सिर्फ धिक्कार दोगे
तुम्हारी झूटी भक्ति से कही ऊपर मेरी कल्पना है
क्यूंकि मेरी कल्पना को ही तुम भगवान कहते हो
मै मजदूर हूँ जिसने तेरे भगवान को बनाया है
फिर मै कौन हूँ जिसने तेरे भगवन को बनाया है ???????????????, ......... मनोज
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