************************************************************
धर्म संविधान है कर्म के विधान का /
आत्मज्ञान जान इसे घूँट घूँट पीजिए //
बंधन से मुक्त कर्म जागृत हो स्वाभिमान /
जीवन धन मान इसे आत्मसात कीजिये //
अमृत पी देव बने विष पी कर महादेव/
परहित से हित अपना पहचान लीजिए //
चिंतन मनमंथन है अंतर परिवर्तन का /
तन मन पर संयम की डोर बाँध दीजिए//
मन में संकल्प रहे तन में संधान रहे/
सुख दुःख को सावन की रैन मान भीगिये // मनोज नौटियाल
*************************************************************
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें