बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

परिभाषा की पराकाष्ठा यदि प्रेम शब्द है वो तुम हो

परिभाषा की पराकाष्ठा यदि प्रेम शब्द है वो तुम हो 
मेरे मन के दरवाजे पर यदि कलरव है वो तुम हो 
कभी प्रेम के बिंदु गिरें यदि अश्रु जिसे सब कहते हैं 
उन धारों में एहसासों का जो अभिनव है वो तुम हो ।।

समझ गयी हो तुम भी लेकिन कह न सका जिसको तुम हो 
पीड़ा मन की तुम ही हो जो सह न सका वह भी तुम हो ।।
एकाकार नहीं हो सकता मै भी हूँ कुछ कुछ खुद जैसा 
रूप तुम्हारा यदि कोई मै हूँ ....समझो मुझमे भी तुम हो ।।

अंतर्मन में थी व्याकुलता विवरण उसका बस तुम हो
मन में दी तुमने शीतलता कारण उसका बस तुम हो
कल की बात नहीं सोची है ना तुमने ना मैंने अब तक
मै हूँ एक पागल ये समझो जिसका धारण बस तुम हो ।।

शब्दों का संबोधन बंधन बनने का कारण तुम हो
मेरी रचना का अभिबोधन जगने का कारण तुम हो
मै जब भी तुमको संबोधन प्रियतम का बोलूं समझो
मेरी चाहत का अभिवादन करने का धारण तुम हो ।।

तुम ही तुम हो इस जीवन में प्रेम शब्द उच्चारण तुम हो
जीवन के अंतिम चरणों का कारण मारण भी तुम हो ।।
मुझमे तुझमे भेद समय का पल पल का जो कल है साथी
उस कल में मेरी खुशियों का पग -पग पर पारायण तुम हो ।।.......मनोज नौटियाल

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें