दिया ज्ञान का जले ह्रदय में गीता का सन्देश यही है
....समरसता हो वशुन्धरा में धर्मो का उपदेश यही है
पूर्ण नहीं है सभी किन्तु यदि भाव सांधते रहें प्रतिक्षण
इश्वर की सच्ची भक्ति में अज्ञान बिना प्रवेश नहीं है....
महारास हो रहा चराचर एकाकी कुछ नहीं धरा पर
........महारास में होकर दृष्टा पा जाएगा तू योगेश्वर
अल्हड होकर ही नदियाँ अपने सागर से मिलनी है
इश्वर की सच्ची भक्ति में अज्ञान बिना प्रवेश नहीं है....
............पंचतत्व से निर्मित काया अंतर में ब्रह्मांड समाया
काल चक्र में विलय स्वाश का ऋतु परिवर्तन करती काया
अटल मृत्यु के द्वार लांघ कर नव जीवन कुंजी मिलनी है
..........इश्वर की सच्ची भक्ति में अज्ञान बिना प्रवेश नहीं है....
चित पट है शाश्वत के तल पर अंधकार की खोज दिवाकर
शक्ति बिना शिव भी शव है , शक्ति बिना है शून्य चराचर
.......रावण बन जाए ज्ञान जब राम जन्म की नीव वही है
..........इश्वर की सच्ची भक्ति में अज्ञान बिना प्रवेश नहीं है..........मनोज
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