बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

मेरे प्रियतम

मेरे प्रियतम
तुमबिन प्रतिक्षण युग बीते हैं
आशा पात्र भये रीते हैं
प्रेम छुदा की प्यासी विरहन
कब आओगे बन कर सावन


मेरे प्रियतम
इन नैनो में विगत मिलन छण
करते  हैं नित स्वप्न सृजन 
तुमको पाऊं संग अपने मै
निहारती हूँ जब जब  दर्पण 


मेरे प्रियतम 
कागा आश बंधाता प्रतिदिन 
बासे बैरी मेरे आँगन 
निंदिया बिन करवट लेती मै 
अखियाँ बरसे पल छिन पल छिन


मेरे प्रियतम 
श्रृंगार अधूरा है तुम बिन 
बहुत हुआ अब आ भी जाओ 
सेज सजाये विरह अग्नि में 
तड़प रही तुम्हरी दुल्हन ........................... मनोज  

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