मेरे प्रियतम
तुमबिन प्रतिक्षण युग बीते हैं
आशा पात्र भये रीते हैं
प्रेम छुदा की प्यासी विरहन
कब आओगे बन कर सावन
मेरे प्रियतम
इन नैनो में विगत मिलन छण
करते हैं नित स्वप्न सृजन
तुमको पाऊं संग अपने मै
निहारती हूँ जब जब दर्पण
मेरे प्रियतम
कागा आश बंधाता प्रतिदिन
बासे बैरी मेरे आँगन
निंदिया बिन करवट लेती मै
अखियाँ बरसे पल छिन पल छिन
मेरे प्रियतम
श्रृंगार अधूरा है तुम बिन
बहुत हुआ अब आ भी जाओ
सेज सजाये विरह अग्नि में
तड़प रही तुम्हरी दुल्हन ........................... मनोज
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