श्मसान विराजत मातु महा शिव काल विहार करावत है
कर तांडव भूत रिझावत हैं बहु प्रेत कराल सुनावत है ||
नर मुंड भरे मधु पान पिचाशिनी भैरव तोहि पिलावत है
शव आसन भावत मातु तुम्हे प्रिय भोजन रक्त रिझावत है ||
चहुँ और फिरे हुँकार भरे संग भूत खवेश कराल करे
घनघोर घटा सम केश सजे दोउ नैन भयावह ज्वाल भरे
नर मुंड विराजत हार गले रसना की लाल कराल परे
यह देख डरे सब दानव देव पुकारहिं हे अवधूत हरे ||.......मनोज
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें