सोच रहा हूँ आज कलम को अपने मन की बात बता दूँ
टूटे बिखरे सहमे घायल बीते सब जज्बात बता दूँ ||
ढाई आखर सुनकर कैसे भटक गया था मन बैरागी
उस मायावी बीते कल की आज तुम्हे शुरुआत बता दूँ ||
लिखा नहीं जो अब तक मैंने सच के कोरे भोजपत्र पर
क्यूँ जीवन अभिनय बन बैठा वो सारे हालात बता दूं ||
अब तक जिसने भी खोजा है मुझको मेरी रचनाओं में
उन सारे अनुमानों का मै सही गलत अनुपात बता दूँ ||
बरसों पहले शुरू हुयी थी काली रात अमावास की जो
अब तक कैसे नहीं हुयी है उसकी नव प्रभात बता दूँ ||
कैसे नफरत की छेनी से गढ़ा गया कोरे पत्थर को
इस मूरत पर शिल्पकार के दिए हुए आघात बता दूँ ||
चाहत की मंडी में मैंने सारी खुशियाँ मुफ्त बाँट दी
दर्द भरी दुनिया ये मुझको किसने दी सौगात बता दूँ ||
सोच रहा हूँ आज कलम को अपने मन की बात बता दूँ
टूटे बिखरे सहमे घायल बीते सब जज्बात बता दूँ ||
मनोज नौटियाल
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