सपनो की बरात सजा कर, ले आया हूँ द्वार तुम्हारे
योवन की पहली आहट जब ,लेने को आई अंगडाई
कोमल भावों ने धीरे से ,मन को ये आभास कराई
वर्षों से कल्पित आभा को ,आज पूर्ण साकार मिला है
भावों की बूंदों को मेरी ,नदिया का आकार मिला है
अनुबंधों के लेखे जोखे ,मुझको सब स्वीकार तुम्हारे
सपनो की बरात सजा कर ,ले आया हूँ द्वार तुम्हारे ||
जाने कितने बरसों मेरे , भावों ने उपवास रखे थे
छल ना ले माया संयम को ,कीलक अपने पास रखे थे
रह रह कर मर्यादा मुझको झूठे आश्वाशन देती थी
कभी नहीं लांघी मैंने जब ,रुकने का आसन देती थी
तुम भी आज खोल दो सारे, संयम के श्रृंगार तुम्हारे
सपनो की बरात सजा कर ,ले आया हूँ द्वार तुम्हारे ||
बूँदें स्वाती की गिरने दो ,सदियों से चातक प्यासा है
उठने दो सागर में लहरें , ये माझी की अभिलाषा है
आज छलकने दो आँखों से , संयम की वो रसमय हाला
जलने दो तन मन में इतने ,वर्षों की आंदोलित ज्वाला
आज खोल दो बंधे हुए थे जितने भी त्यौहार तुम्हारे
सपनो की बरात सजा कर ,ले आया हूँ द्वार तुम्हारे ||
मनोज नौटियाल
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